Book Name:Seerat e Bibi Khadija tul Kubra
ख़ानदान की जवान लड़कियां नाचतीं, गातीं, ऊधम मचाती हैं, इस दौरान मर्द भी बिला तकल्लुफ़ अन्दर आते जाते हैं, कुछ बे ह़या मर्द और औ़रतें जी भर कर बद निगाही करते हैं, न ख़ौफे़ ख़ुदा, न शर्मे मुस्त़फ़ा । फ़िल्मी रीकॉर्डिंग के बिग़ैर आज कल शायद ही कहीं शादी होती हो, अगर कोई समझाए, तो बाज़ अवक़ात जवाब मिलता है : वाह ! अल्लाह करीम ने पेहली बच्ची की ख़ुशी दिखाई है और गाना, बाजा न करें ! बस जी ! ख़ुशी के वक़्त सब कुछ चलता है । مَعَاذَ اللّٰہ
याद रखिए ! ख़ुशी के वक़्त अल्लाह करीम का शुक्र अदा किया जाता है कि ख़ुशियां ज़ियादा हों, ना फ़रमानी नहीं की जाती, कहीं ऐसा न हो कि इस ना फ़रमानी की नुह़ूसत से इकलौती बेटी दुल्हन बनने के आंठवें दिन रूठ कर मैके आ बैठे और सारी ख़ुशियां धूल में मिल जाएं या धूमधाम से नाच, गानों की धमा चौकड़ी में रुख़्सत की हुई दुल्हन, 9 माह के बाद पेहली ही डीलीवरी में मौत के घाट उतर जाए । शादी की ख़ुशी में गाने बजाने का गुनाह करने वाले बग़ौर सुनें । ह़दीसे पाक में है : दो आवाज़ों पर दुन्या व आख़िरत में लानत है : (1) नेमत के वक़्त बाजा । (2) मुसीबत के वक़्त चिल्लाना । (کنزالعمال،کتاب اللہو…الخ، قسم الاقوال، جزء ۱۵،۱۵/۹۵، حدیث:۴۰۶۵۴)
ग़ौर कीजिए ! कौन सा जोड़ा आज सुखी है ? कमो बेश हर जगह ख़ानाजंगी है, कहीं सास बहू में अन बन है, तो कहीं ननद और भावज में ठीक ठाक ठनी हुई है, बात बात पर रूठ मन का सिलसिला है, एक दूसरे पर जादू टोने करवाने के इल्ज़ामात हैं, येह सब कहीं शादियों में ग़ैर शरई़ ह़रकात का नतीजा तो नहीं ? क्यूंकि आज कल जिस के यहां शादी का सिलसिला होता है, वहां इतने गुनाह किए जाते हैं कि उन का शुमार नहीं हो सकता । लिहाज़ा हमें चाहिए कि इन ग़लत़ रुसूमो रवाज से मुंह मोड़ कर सुन्नत के मुत़ाबिक़ सादगी से शादी को ख़ाना आबादी का ज़रीआ़ बनाएं कि इसी में भलाई भी है और बरकत भी । जैसा कि :
उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते आ़इशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا से रिवायत है, नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : बड़ी बरकत वाला निकाह़ वोह है जिस में बोझ कम हो । (مسند امام احمد، مسند السیدۃ عائشۃ، ۹/۳۶۵،حدیث:۲۴۵۸۳)
ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक के तह़्त लिखते हैं : यानी जिस निकाह़ में फ़रीक़ैन का ख़र्च कम कराया जाए, महर भी मामूली हो, जहेज़ भारी न हो, कोई जानिब मक़्रूज़ न हो जाए, किसी त़रफ़ से कोई सख़्त शर्त़ न हो, अल्लाह (पाक) के तवक्कुल (भरोसे) पर लड़की दी जाए, वोह निकाह़ बड़ा ही बा बरकत है और ऐसी शादी ख़ाना आबादी है । (मिरआतुल मनाजीह़, 5 / 11) अल्लाह पाक हमें भी अपनी तक़रीबात को शरीअ़त के मुत़ाबिक़ करने और ग़ैर शरई़ रुसूमात से पाक रखने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِّ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد