Safai Ki Ahamiyyat

Book Name:Safai Ki Ahamiyyat

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान : बेशक अल्लाह पसन्द रखता है बहुत तौबा करने वालों को और पसन्द रखता है सुथरों को ।

          जबकि अह़ादीसे मुबारका में भी मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर सफ़ाई, सुथराई की अहमिय्यत को उजागर किया गया है । इस्लाम में पाकीज़गी का मफ़्हूम बहुत वसीअ़ है, इन्सानी ज़िन्दगी में पाकीज़गी की ज़रूरत उस की पैदाइश से शुरूअ़ हो कर उस की मौत तक बाक़ी रेहती है । लिहाज़ा पाकीज़गी से वाबस्तगी कमाले ज़िन्दगी है, तो पाकीज़गी से ला तअ़ल्लुक़ी ज़वाले ज़िन्दगी है । पाकीज़गी की पाबन्दी सेह़त है, तो पाकीज़गी से बेज़ारी गोया बीमारी है, येही वज्ह है कि निगाहे मुस्त़फ़ा में पाकीज़गी वसीअ़ मानों वाला लफ़्ज़ है । इसी लिए रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने पाकीज़गी को निस्फ़ ईमान क़रार दिया । आइए ! सफ़ाई, सुथराई के ज़िम्न में 7 अह़ादीसे मुबारका सुनते हैं । चुनान्चे,

अह़ादीस में सफ़ाई की अहमिय्यत

  1. इरशाद फ़रमाया : اَلطُّھُوْرُ نِصْفُ الْاِیْمَانِ सफ़ाई निस्फ़ ईमान है । (مسند احمد، مسند الکوفیین،۶/۳۵۸،حدیث:۱۸۳۱۵ملتقطاً)
  2. इरशाद फ़रमाया : बेशक इस्लाम साफ़ सुथरा (दीन) है, तो तुम भी सफ़ाई, सुथराई ह़ासिल किया करो क्यूंकि जन्नत में साफ़ सुथरा रेहने वाला ही दाख़िल होगा । (کنز العمال،كتاب الطهارة،الباب الاول فی فضل الطہارۃ ،جز۹، ۵/۱۲۳،حدیث:۲۵۹۹۶)
  3. इरशाद फ़रमाया : जो चीज़ तुम्हें मिल जाए, उस से सफ़ाई, सुथराई ह़ासिल करो, अल्लाह करीम ने इस्लाम की बुन्याद सफ़ाई पर रखी है और जन्नत में साफ़ सुथरे रेहने वाले ही दाख़िल होंगे । (جمع الجوامع، ۴/۱۱۵،حدیث: ۱۰۶۲۴)
  4. इरशाद फ़रमाया : जो लिबास तुम पेहनते हो, उसे साफ़ सुथरा रखो और अपनी सुवारियों की देखभाल किया करो और तुम्हारी ज़ाहिरी ह़ालत ऐसी साफ़ सुथरी हो कि जब लोगों में जाओ, तो वोह तुम्हारी इ़ज़्ज़त करें । (جامع صغیر،ص۲۲، حدیث: ۲۵۷)

          ह़ज़रते अ़ल्लामा अ़ब्दुर्रऊफ़ मुनावी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : इस ह़दीस में इस बात की त़रफ़ इशारा है कि हर वोह चीज़ जिस से इन्सान नफ़रत व ह़क़ारत मह़सूस करे, उस से बचा जाए, ख़ुसूसन ह़ुक्मरानों और उ़लमाए किराम को उन चीज़ों से बचना चाहिए । (فیض القدیر،۱/۲۴۹، تحت الحدیث: ۲۵۷ ملخصاً)

  1. इरशाद फ़रमाया : लाज़िम है हर मुसलमान पर कि हर सात दिन में एक दिन ग़ुस्ल करे, जिस में सर व जिस्म धोए । (بخاری،کتاب الجمعۃ، باب ھل علی من لم یشھد…إلخ،۱/۳۱۰،حدیث: ۸۹۷)

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : यहां एक दिन से मुराद जुम्आ़ का दिन है । मत़लब येह है कि हफ़्ते में जुम्आ़ के दिन ग़ुस्ल कर लेना चाहिए ताकि बदन भी साफ़ हो जाए और कपड़े भी और जुम्आ़ की भीड़ में मुसलमानों को तक्लीफ़ न हो । चूंकि सर में मैल, जूएं ज़ियादा हो जाती हैं, इस लिए ख़ुसूसिय्यत से इस का ज़िक्र किया, वरना जिस्म में येह भी दाख़िल था । ग़ुस्ल में कुल्ली और नाक में पानी लेना और तमाम जिस्म का धोना हमारे हां फ़र्ज़ है । (मिरआतुल मनाजीह़, 1 / 345 ता 346, मुल्तक़त़न)