Safai Ki Ahamiyyat

Book Name:Safai Ki Ahamiyyat

रखना वग़ैरा । सलीक़ा : यानी वक़्त की पाबन्दी, घर और अपनी या किसी और की गाड़ी में बैठते वक़्त बिला ज़रूरत ज़ोर से दरवाज़ा बन्द न करना, अपने घर, तालीम गाह, दफ़्तर या किसी के हां की जो चीज़ इजाज़त होने की सूरत में उठाई फिर उसी जगह रखना वग़ैरा)

          अल्लाह करीम हमें रोज़ाना अपने नेक आमाल का जाइज़ा लेते हुवे, नेक आमाल का रिसाला पुर करने की तौफ़ीक़ नसीब फ़रमाए ।

اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِّ الْکَرِیْم صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!                                      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

दिल की इस्लाह़ की ज़रूरत

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! हम ज़ाहिरी सफ़ाई, सुथराई के मुतअ़ल्लिक़ सुन रहे थे । याद रखिए ! ज़ाहिरी जिस्म और लिबास की सफ़ाई, सुथराई अपनी जगह लेकिन दिल की इस्लाह़ व पाकीज़गी भी बहुत ज़रूरी है । चुनान्चे, सरकारे आ़ली वक़ार, मदीने के ताजदार صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم का फ़रमाने आ़लीशान है : आगाह रहो ! जिस्म में एक गोश्त का टुक्ड़ा है, जब वोह ठीक हो जाए, तो सारा जिस्म ठीक हो जाता है और जब वोह बिगड़ जाए, तो पूरा जिस्म बिगड़ जाता है । ख़बरदार ! वोह दिल है । (بخاری ،کتاب الایمان ،باب فضل من استبراء لدینہ، ۱/۳۳،حدیث۵۲)

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक के तह़्त फ़रमाते हैं : यानी दिल बादशाह है, जिस्म इस की रिआ़या । जैसे बादशाह के दुरुस्त हो जाने से तमाम मुल्क ठीक हो जाता है, ऐसे ही दिल संभल जाने से तमाम जिस्म ठीक हो जाता है । दिल इरादा करता है, जिस्म उस पर अ़मल की कोशिश (करता है) । इस लिए सूफ़ियाए किराम (رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن) दिल की इस्लाह़ पर बहुत ज़ोर देते हैं । (मिरआतुल मनाजीह़, 4 / 230, मुल्तक़त़न)

          इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ लिखते हैं : ज़ाहिरी आमाल का बात़िनी औसाफ़ के साथ एक ख़ास तअ़ल्लुक़ है । अगर बात़िन ख़राब हो, तो ज़ाहिरी आमाल भी ख़राब होंगे और अगर बात़िन ह़सद, रियाकारी और तकब्बुर वग़ैरा ऐ़बों से पाक हो, तो ज़ाहिरी आमाल भी दुरुस्त होते हैं । (منھاج العابدین،الباب الاول ،العقبة الاولی ، ص ۱۳،ملخصًا) बात़िनी गुनाहों का तअ़ल्लुक़ उ़मूमन दिल के साथ होता है, लिहाज़ा दिल की इस्लाह़ बहुत ज़रूरी है ।

          इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ एक और मक़ाम पर फ़रमाते हैं : जिस की ह़िफ़ाज़त और निगरानी बहुत ज़रूरी है, वोह दिल है क्यूंकि येह तमाम जिस्म की अस्ल है । येही वज्ह है कि अगर तेरा दिल ख़राब हो जाए, तो तमाम आज़ा ख़राब हो जाएंगे और अगर तू इस की इस्लाह़ कर ले, तो बाक़ी सब आज़ा की इस्लाह़ ख़ुद बख़ुद हो जाएगी क्यूंकि दिल दरख़्त के तने की त़रह़ है और बाक़ी आज़ा शाख़ों की त़रह़ और शाख़ों की दुरुस्ती या ख़राबी दरख़्त के तने पर मौक़ूफ़ है । तो अगर तेरी आंख, ज़बान, पेट वग़ैरा दुरुस्त हों, तो इस का मत़लब येह है कि तेरा दिल दुरुस्त है और अगर येह तमाम आज़ा गुनाहों की त़रफ़ राग़िब हों, तो समझ ले कि तेरा दिल ख़राब है फिर तुझे