Book Name:Ambiya-e-Kiram Ki Naiki Ki Dawat
ख़ुद भी सफ़र कर के और दूसरों को भी सफ़र करवा के अपनी और सारी दुन्या के लोगों की इस्लाह़ की कोशिश करने में हम काम्याबी ह़ासिल कर सकते हैं ।
अल्लाह पाक हमें अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام की दी जाने वाली नेकी की दावत के सदके़ दीने इस्लाम पर साबित क़दमी नसीब फ़रमाए, नेकी की दावत आ़म करने में आने वाली तक्लीफ़ों, परेशानियों, आज़माइशों को हिम्मत व सब्र के साथ बरदाश्त करने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए ।
اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
अज़ान देने के फ़ज़ाइ़ल
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आइए ! अज़ान देने के बारे में चन्द अहम बातें सुनने की सआ़दत ह़ासिल करते हैं । पेहले 2 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सुनिए :
1. इरशाद फ़रमाया : सवाब की ख़ात़िर अज़ान देने वाला उस शहीद की त़रह़ है जो ख़ून में लिथड़ा हुवा है और जब मरेगा क़ब्र में उस के जिस्म में कीड़े नहीं पड़ेंगे । (معجم کبیر،۱۲/۳۲۲،حدیث:۱۳۵۵۴)
2. इरशाद फ़रमाया : मैं जन्नत में गया, उस में मोती के गुम्बद देखे, उस की ख़ाक मुश्क की है । पूछा : ऐ जिब्रईल ! येह किस के लिए हैं ? अ़र्ज़ की : आप (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) की उम्मत के मोअज़्ज़िनों और इमामों के लिए । (جامع صغیر لِلسُّیُوطی،ص۲۵۵،حدیث:۴۱۷۹)
٭ नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने सफ़र में एक बार अज़ान दी थी और कलिमाते शहादत यूं कहे : اَشْہَدُاَنِّیْ رَسُوْلُ اللہ (मैं गवाही देता हूं कि मैं अल्लाह पाक का रसूल हूं) । (फ़तावा रज़विय्या, 5 / 375) ٭ जिस बस्ती में अज़ान दी जाए, अल्लाह पाक अपने अ़ज़ाब से उस दिन उसे अमन देता है । (معجم کبیر،۱/۲۵۷،حدیث:۷۴۶) ٭ पांचों फ़र्ज़ नमाज़ें इन में जुम्आ़ भी शामिल है, जब जमाअ़ते ऊला के साथ मस्जिद में वक़्त पर अदा की जाएं, तो इन के लिए अज़ान सुन्नते मोअक्कदा है और इस का ह़ुक्म मिस्ले वाजिब है कि अगर अज़ान न कही गई, तो वहां के तमाम लोग गुनहगार होंगे । (فتاوی ھندیۃ،کتاب الصلاۃ، الباب الثانی،الفصل الاول فی صفتہ واحوال المؤذن،۱/۵۳) ٭ अगर कोई शख़्स शहर के अन्दर घर में नमाज़ पढ़े, तो वहां की मस्जिद की अज़ान उस के लिए काफ़ी है मगर अज़ान केह लेना मुस्तह़ब है । (رَدُّالْمُحتار،۲/۶۲،۷۸) ٭ वक़्त शुरूअ़ होने के बाद अज़ान कहिए, अगर वक़्त से पेहले केह दी या वक़्त से पेहले शुरूअ़ की और दौराने अज़ान वक़्त आ गया, तो दोनों सूरतों में अज़ान दोबारा कहिए । (ہدایۃ،۱/ ۴۵) ٭ ख़वातीन अपनी नमाज़ अदा पढ़ती हों या क़ज़ा,