Book Name:Ambiya-e-Kiram Ki Naiki Ki Dawat
मुकम्मल यक़ीन हो, उस को इस मुबारक काम में तक्लीफ़ मह़सूस नहीं होती । (इह़याउल उ़लूम, 2 / 410) लोगों की त़रफ़ से तक्लीफ़ दिए जाने की वज्ह से नेकी की दावत आ़म करने से रुकना नहीं चाहिए कि ह़ज़रते सय्यिदुना नूह़ عَلٰی نَبِیِّنَا وَ عَلَیْہِ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام ने तकालीफ़ बरदाश्त करने के बा वुजूद 950 साल तक तब्लीग़ फ़रमाई । तब्लीग़े दीन के लिए जुरअत और हिम्मत की ज़रूरत होती है, डरपोक इन्सान तब्लीग़ का ह़क़ अदा नहीं कर सकता । (सिरात़ुल जिनान, 4 / 358, बित्तग़य्युर) नेकी की दावत देने का मुआ़मला हो या बुराई से मन्अ़ करने का, हर सूरत में नर्मी नर्मी और नर्मी को पेशे नज़र रखना चाहिए कि नर्मी के जो फ़वाइद हैं वोह सख़्ती से हरगिज़ ह़ासिल नहीं हो सकते । इसी त़रह़ येह बात भी ज़ेहन नशीन रखिए कि मुबल्लिग़ को हर जगह मुबल्लिग़ ही होना चाहिए, उसे हर वक़्त, हर जगह अपना अन्दाज़ सुन्नतों भरा रखना चाहिए, वोह मह़ल्ले में हो या बाज़ार में, जनाज़े में हो या शादी की बारात में, दवाख़ाने में हो या अस्पताल (Hospital) में, बाग़ में हो या किसी की मय्यित को दफ़्न करने के लिए क़ब्रिस्तान में, अल ग़रज़ ! हर जगह उसे सुन्नतों का आईनादार होना चाहिए और मौक़अ़ की मुनासबत से नेकी की दावत देने में शर्म भी नहीं करनी चाहिए । एक मुबल्लिग़ को किन ख़ूबियों से आरास्ता होना चाहिए । आइए ! उन में से 9 ख़ूबियों के बारे में सुनते हैं ।
मुबल्लिग़ के औसाफ़
(1) मुबल्लिग़ अरकाने इस्लाम यानी नमाज़, रोज़े वग़ैरा की पाबन्दी और सुन्नते रसूल पर अ़मल करने वाला हो क्यूंकि ज़ेवरे इ़ल्म के साथ अ़मल की क़ुव्वत, नेकी की दावत को ज़ियादा असर करने और फ़ाइदा पहुंचाने वाला बनाती है । (2) नेकी की दावत देते वक़्त सिर्फ़ व सिर्फ़ अल्लाह पाक की रिज़ा की निय्यत पर दिली तवज्जोह रहे, इस अ़ज़ीम काम के बदले में किसी दुन्यवी मालो मन्सब या शोहरत व इ़ज़्ज़त को त़लब करने वाला न हो बल्कि सिर्फ़ बारगाहे इलाही से सवाब की उम्मीद रखने वाला हो और इस अ़ज़ीम मदनी मक़्सद : "मुझे अपनी और सारी दुन्या के लोगों की इस्लाह़ की कोशिश करनी है" को अपनाने के लिए ह़क़ीक़ी जज़्बे से मालामाल हो । (3) मुबल्लिग़ अपने इ़ल्म की कसरत, ज़ोरे बयान और सलाह़िय्यत व क़ाबिलिय्यत पर नहीं बल्कि अल्लाह पाक पर भरोसा करने वाला हो कि वोही सीधे रास्ते की त़रफ़ रेहनुमाई करने वाला है । (4) मुबल्लिग़ अच्छे अख़्लाक़ का पैकर और नर्मी का आ़दी हो । (5) मुबल्लिग़ को कभी राहे ख़ुदा में कोई मुश्किल पेश आ जाए, किसी मुंह फट शख़्स से वासित़ा पड़ जाए, तो सब्र करने वाला हो । (6) मुबल्लिग़ के लिए ज़रूरी है