Aala Hazrat Ka Aala Kirdar

Book Name:Aala Hazrat Ka Aala Kirdar

اَلْحَمْدُ لِلّٰہ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ वोह अ़ज़ीम हस्ती हैं जो इ़बादत, तक़्वा व परहेज़गारी, इ़श्के़ रसूल, आ़जिज़ी व इन्केसारी और इ़ल्मो अ़मल के ह़क़ीक़ी पैकर थे । اِنْ شَآءَ اللّٰہ आज के इस हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में हम बरकत व रह़मत ह़ासिल करने के लिये आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के आ'ला किरदार की चन्द झल्कियां और ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़त सुनने की सआ़दत ह़ासिल करेंगी । आइये ! पहले एक नसीह़त आमोज़ वाक़िआ़ सुनिये । चुनान्चे,

तकब्बुर से आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की ना गवारी

          ख़लीफ़ए आ'ला ह़ज़रत, मौलाना सय्यिद अय्यूब अ़ली रज़वी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का बयान है : एक साह़िब आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की ख़िदमत में ह़ाज़िर हुवा करते और आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ भी कभी कभी उन के यहां तशरीफ़ ले जाया करते थे ।

एक मरतबा ह़ुज़ूर (आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ) उन के यहां तशरीफ़ फ़रमा थे कि उन के मह़ल्ले का एक बेचारा ग़रीब मुसलमान टूटी हुई पुरानी चारपाई पर जो सेह़्न (Courtyard) के किनारे पड़ी थी, झिजकते हुवे बैठा ही था कि साह़िबे ख़ाना ने निहायत कड़वे तेवरों (या'नी ग़ुस्से वाली नज़रों) से उस की त़रफ़ देखना शुरूअ़ किया, यहां तक कि वोह नदामत (या'नी शर्मिन्दगी) से सर झुकाए उठ कर चला गया । आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ को साह़िबे ख़ाना के इस मग़रूराना अन्दाज़ से सख़्त तक्लीफ़ पहुंची मगर कुछ फ़रमाया नहीं । कुछ दिनों बा'द वोह आप (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ) के यहां आए । आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने अपनी चारपाई पर जगह दी, वोह बैठे ही थे कि इतने में करीम बख़्श नामी ह़ज्जाम (Barber) ह़ुज़ूर (आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की दाढ़ी) का ख़त़ बनाने के लिये आए, वोह इस फ़िक्र में थे कि कहां बैठूं ? 'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने फ़रमाया : भाई करीम बख़्श ! क्यूं खड़े हो ? मुसलमान आपस में भाई भाई हैं और उन साह़िब के बराबर में बैठने का इशारा फ़रमाया । वोह बैठ गए फिर उन साह़िब के ग़ुस्से की येह कैफ़िय्यत थी कि जैसे सांप फुंकारें मारता है, वोह फ़ौरन उठ कर चले गए फिर कभी न आए । (ह़याते आ'ला ह़ज़रत, स. 105, मुलख़्ख़सन)

        प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आप ने सुना कि आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने अ़मली त़ौर पर हमें बता दिया कि कोई मुसलमान चाहे कितना ही अमीरो कबीर हो, दुन्यवी इ़ज़्ज़त व मर्तबे वाला हो या किसी आ'ला ख़ानदान से तअ़ल्लुक़ रखता हो, उसे हरगिज़ हरगिज़ येह ह़क़ नहीं पहुंचता कि किसी मुसलमान को अपने से मा'मूली जाने, लोगों के सामने ज़लील करे बल्कि एक मुसलमान होने की ह़ैसिय्यत से हर इस्लामी बहन के साथ अच्छा सुलूक करना, आने वाली का दिल ख़ुश करने के लिये मुस्कुरा कर मिलना, उसे इ़ज़्ज़त के साथ बिठाना और इस्लामी बहनों में बराबरी क़ाइम रखना इस्लाम की रौशन ता'लीमात का ह़िस्सा है मगर अफ़्सोस ! सद अफ़्सोस ! आज हम इस्लामी ता'लीमात को छोड़ कर न जाने किस त़रफ़ चल पड़ी हैं ? और अपनी क़ौम (Nation), ज़बान (Language) और नसब (Caste) के सबब फ़ख़्र करती और ख़ुद को दूसरों से