Aala Hazrat Ka Aala Kirdar

Book Name:Aala Hazrat Ka Aala Kirdar

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ दा'वते इस्लामी "मदनी चेनल" और "आई-टी" के ज़रीए़ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जब कि दीगर कुतुबो रसाइल छापने के साथ साथ "माहनामा फै़ज़ाने मदीना" की इशाअ़त की सूरत में प्रिन्ट मीडिया के ज़रीए़ "फ़िक्रे रज़ा" को आ़म करने में मसरूफ़ है ।

          अल्लाह करीम, 'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के त़ुफै़ल आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक "दा'वते इस्लामी" को मज़ीद तरक़्क़ियां अ़त़ा फ़रमाए ।

آمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!     صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

मुत़ालआ़ करने के मदनी फूल

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आइये ! मुत़ालआ़ करने के बारे में चन्द मदनी फूल सुनने की सआ़दत ह़ासिल करती हैं । पहले 2 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मुलाह़ज़ा कीजिये :

1.      फ़रमाया : बेशक इ़ल्म सीखने से आता है ।  (کنز العمال،۱۰/۱۰۴،حدیث:۲۹۲۵۲)

2.      फ़रमाया : दुन्या ला'नती है, अल्लाह पाक के ज़िक्र, उस के दोस्त और दीनी इ़ल्म पढ़ने और पढ़ाने वाले के इ़लावा इस की हर चीज़ भी ला'नती है । (تِرمِذی،کتاب الزہد،۴/۱۴۴،حدیث:۲۳۲۹)

٭ मुत़ालआ़ ईमान की मज़बूत़ी का बाइ़स है । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 16) ٭ मुत़ालआ़ करने से इ़ल्म बढ़ता है । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 17) ٭ मुत़ालआ़ रब्बे करीम की पहचान का ज़रीआ़ है । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 18) ٭ मुत़ालआ़ करने से काइनात में ग़ौरो फ़िक्र करने का ज़ेहन बनता है । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 18) ٭ मुत़ालआ़ करने से अ़क़्ल में इज़ाफ़ा होता है । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 19) ٭ मुत़ालआ़ इन्सान की दीनी व दुन्यावी दोनों तरक़्क़ियों का सबब बनता है । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 19) ٭ मुत़ालआ़ त़बीअ़त में चुस्ती, निगाहों में तेज़ी और ज़ेह्नो दिमाग़ को ताज़गी अ़त़ा करता है । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 19, मुलख़्ख़सन) ٭ ऐसी कुतुब, रसाइल और अख़्बारात से हमेशा दूर रहिये जो ईमान के लिये ज़हरे क़ातिल, ह़या ख़त्म करने और अख़्लाक़ तबाह करने वाले हों । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 29) ٭ अपने बुज़ुर्गों के ह़ालात जानने और उन की पैरवी करने के लिये उन की सीरत पर मुश्तमिल कुतुब का मुत़ालआ़ भी ज़रूरी है । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 33) ٭ इमाम ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब तुम कोई इ़ल्म ह़ासिल करने लगो या मुत़ालआ़ करना चाहो, तो बेहतर है कि तुम्हारा इ़ल्म व मुत़ालआ़ नफ़्स को पाक करने और दिल की इस्लाह़ का बाइ़स हो । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 32) ٭ क़ुव्वते ह़ाफ़िज़ा के लिये जहां और दवाएं इस्ति'माल और वज़ाइफ़ किये जाते हैं, वहीं एक दवा "मुत़ालआ़" भी है । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 36) ٭ कोशिश कीजिये कि किताब हर वक़्त साथ रहे कि जहां मौक़अ़ मिले कुछ न कुछ मुत़ालआ़ कर लिया जाए और किताब की सोह़बत भी मिले । (मुत़ालआ़ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 36) ٭ मुत़ालआ़ करने के बा'द तमाम मुत़ालए़ को इब्तिदा से इन्तिहा तक सरसरी नज़र से देखा जाए और उस का एक ख़ुलासा