Book Name:Aala Hazrat Ka Aala Kirdar
कर मुठ्ठी भर पैसे निकाले और वोह पैसे दिखा कर फ़रमाया : मैं तुम को येह दूंगा, तुम थप्पड़ मारो ! मगर बेचारा येही कहता रहा : ह़ुज़ूर ! मैं ने मुआ़फ़ किया । आख़िरे कार आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने उस का हाथ पकड़ कर बहुत से थप्पड़ अपने सरे मुबारक पर लगाए और फिर उस को पैसे दे कर रुख़्सत कर दिया । (ह़याते आ'ला ह़ज़रत, 1 / 107, मुलख़्ख़सन)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आप ने सुना कि आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने अपने चाहने वालों को अ़मली त़ौर पर येह बता दिया कि चाहे कोई कितने ही बड़े मन्सब (Post) पर फ़ाइज़ क्यूं न हो ! अगर उस से किसी का दिल दुख जाए, तो उसे मुआ़फ़ी मांगने में हरगिज़ शर्म मह़सूस नहीं करनी चाहिये क्यूंकि ह़ुक़ूक़ुल इ़बाद का मुआ़मला इन्तिहाई नाज़ुक है, इस की वज्ह से बहुत से गुनाहों में मुब्तला होने का अन्देशा है, जो दुन्यावी और उख़रवी नुक़्सानात का बाइ़स बन सकते हैं, मसलन बन्दों के ह़ुक़ूक़ अदा न करने से हम कबीरा गुनाह में मुब्तला हो सकती हैं और येही दिल दुखाने, ह़सद करने, दिल में दुश्मनी रखने और दुश्मनियां करने जैसे कई गुनाहों पर उभार सकती है । इन गुनाहों में पड़ने के सबब ग़ीबतों, चुग़लियों, तोहमतों, बद गुमानियों और कई कबीरा गुनाहों का दरवाज़ा भी खुल जाता है । जिन के ह़ुक़ूक़ ज़ाएअ़ किये, उन्हें राज़ी करने के लिये क़ियामत के दिन अपनी नेकियां भी देनी पड़ सकती हैं और नेकियां न होने की सूरत में उन लोगों के गुनाहों का बोझ उठा कर जन्नत से मह़रूम हो कर इ़ब्रतनाक अन्जाम से वासित़ा पड़ सकता है ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ और शफ़्क़त व ख़ैर ख़्वाही
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की सीरते मुबारका का एक पहलू येह भी है कि आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ दुआ़ मांगते वक़्त अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, मह़ब्बतो अ़क़ीदत रखने वालों, मुरीदों और दीगर मुसलमानों के लिये दुआ़ करने का ख़ुसूसी एहतिमाम फ़रमाते थे । आइये ! इस की चन्द मिसालें मुलाह़ज़ा कीजिये ।
दुआ़ के लिये फे़हरिस्त बनाई
आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ नमाज़े फ़ज्र के बा'द अपने अवरादो वज़ाइफ़ के आख़िर में उन सब के लिये नाम ले कर दुआ़ फ़रमाया करते थे । लोग इस बात की आरज़ू रखते थे कि उन के नाम भी इस फे़हरिस्त में शामिल हो जाएं ।
सब के लिये दुआ़ करता हूं
ह़ज़रते सय्यिद अय्यूब अ़ली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : एक दिन मैं बहुत परेशान था, दुआ़ का त़ालिब हुवा, तो आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने दुआ़ फ़रमाई और साथ ही मुझे और मेरे भाई सय्यिद क़नाअ़त अ़ली से इरशाद फ़रमाया : तुम दोनों का नाम भी मैं ने दुआ़ की फे़हरिस्त में शामिल कर लिया है जो आहिस्ता आहिस्ता बहुत लम्बी हो गई है, येह तमाम