Aala Hazrat Ka Aala Kirdar

Book Name:Aala Hazrat Ka Aala Kirdar

पर बिठा कर मस्जिद में पहुंचा दिया और उसी वक़्त मह़ल्ले और ख़ानदान वालों ने येह त़ै किया कि हर अज़ान के बा'द हम सब में से चार मज़बूत़ आदमी कुर्सी ले कर ह़ाज़िर हो जाया करेंगे और पलंग से ही कुर्सी पर बिठा कर मस्जिद की मेह़राब के क़रीब बिठा दिया करेंगे । येह सिलसिला तक़रीबन एक माह तक बड़ी पाबन्दी से चलता रहा, जब ज़ख़्म अच्छा हो गया और आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ख़ुद चलने के क़ाबिल हो गए, तो येह सिलसिला ख़त्म हुवा । आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की नमाज़ तो नमाज़, जमाअ़त का छोड़ना भी बिला उ़ज़्रे शरई़ शायद किसी साह़िब को याद न होगा । (फै़ज़ाने आ'ला ह़ज़रत, स. 136, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

फ़िक्रे आ'ला ह़ज़रत और दा'वते इस्लामी

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी इ़ल्मे दीन को फैलाने और दीने मतीन की ख़िदमत करने में आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के तह़रीर कर्दा रौशन उसूलों पर अ़मल करने की कोशिश कर रही है । आइये ! वोह उसूल और उन की रौशनी में आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी की मुख़्तसरन दीनी ख़िदमात मुलाह़ज़ा कीजिये ।

(1) फ़रमाने आ'ला ह़ज़रत : अ़ज़ीमुश्शान मदारिस खोले जाएं, जिन में ता'लीम का बा क़ाइ़दा सिलसिला हो ।

                                                اَلْحَمْدُ لِلّٰہ इस मक़्सद के तह़त आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी ने मुल्क व बैरूने मुल्क 602 जामिआ़तुल मदीना (लिल बनीन व लिल बनात), 2980 मदारिसुल मदीना (लिल बनीन व लिल बनात) और 53 दारुल मदीना (लिल बनीन व लिल बनात) क़ाइम किये हैं ।

(2) फ़रमाने आ'ला ह़ज़रत : उ़म्दा कारकर्दगी पर मुदर्रिसों (या'नी मोअ़ल्लिमात) को भारी तनख़ाहें दी जाएं ताकि जान तोड़ कर कोशिश करें ।

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ इस उसूल पर अ़मल करते हुवे आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी जामिआ़तुल मदीना और मदारिसुल मदीना की मोअ़ल्लिमात को माहाना बेहतरीन तनख़ाह पेश करने के साथ साथ बोनस और मुक़र्ररा छुट्टियां न करने की सूरत में हर छे महीने बा'द उन छुट्टियों की रक़म भी पेश करती है । सिर्फ़ येही नहीं बल्कि मुमताज़, बेहतर और मुनासिब दरजा बन्दी के ए'तिबार से सालाना इज़ाफ़ा भी किया जाता और त़ै शुदा मुद्दत के ह़िसाब से ग्रेड और तनख़ाह में भी इज़ाफ़ा किया जाता है । इस के इ़लावा मजलिसे त़िब्बी इ़लाज के तह़त मोअ़ल्लिमात को फ़्री मेडीकल की सहूलत भी फ़राहम की जाती है ।

(3) मज़हबी अख़्बार शाएअ़ हों और वक़्तन फ़-वक़्तन हर क़िस्म के ह़िमायते मज़हब में मज़ामीन तमाम मुल्क में ब क़ीमत व बिला क़ीमत रोज़ाना या कम अज़ कम हफ़्तावार पहुंचाते रहें । (फ़तावा रज़विय्या, 29 / 599, मुलख़्ख़सन)