Faizan e Imam Bukhari

Book Name:Faizan e Imam Bukhari

सूखी रोटी तनावुल फ़रमाते

          ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने त़लबे इ़ल्म के दौरान बसा अवक़ात सूखी घास खा कर भी वक़्त गुज़ारा, कभी कभार एक दिन में आ़म त़ौर पर सिर्फ़ दो या तीन बादाम खाया करते थे । एक मरतबा बीमार पड़ गए, ह़कीमों ने बतलाया कि सूखी रोटी खा खा कर इन की अंतड़ियां सूख चुकी हैं । उस वक़्त आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने बताया कि आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ 40 साल (Forty Years) से ख़ुश्क रोटी खा रहे हैं और इस अ़र्से में सालन को बिल्कुल भी हाथ नहीं लगाया । (तज़किरतुल मुह़द्दिसीन, स. 182)

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आप ने सुना कि अल्लाह वालों में इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने का कैसा ज़बरदस्त मदनी जज़्बा हुवा करता था जो सालन के बिग़ैर सूखी रोटी खा कर भी इन्तिहाई ज़ौको शौक़ के साथ इ़ल्मे दीन सीखने में मश्ग़ूल रहा करते थे जब कि आज हमारा मुआ़शरा दुन्यवी उ़लूमो फ़ुनून की डिग्रियों और माल जम्अ़ करने की ख़ात़िर दिन रात मसरूफे़ अ़मल दिखाई देता है मगर दीनी मदारिस व जामिआ़त में बेहतरीन और मुफ़्त सहूलिय्यात के बा वुजूद पढ़़ने वालों की ता'दाद इन्तिहाई कम नज़र आती है और ह़ाल येह है कि बहुत से लोग शरीअ़त के बुन्यादी फ़राइज़ व वाजिबात से ग़ाफ़िल नज़र आते हैं ।

          इ़ल्मे दीन सीखना सिर्फ़ किसी एक ख़ास गिरोह का काम नहीं बल्कि अपनी ज़रूरत के मुत़ाबिक़ इ़ल्म सीखना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है लेकिन निहायत अफ़्सोस की बात है ! कि आज मुसलमानों की एक बड़ी ता'दाद इ़ल्मे दीन से दूर नज़र आती है । नमाज़ियों को देखें, तो चालीस चालीस साल नमाज़ पढ़ने के बा वुजूद ह़ाल येह है कि किसी को वुज़ू करना नहीं आता, तो किसी को ग़ुस्ल का त़रीक़ा मा'लूम नहीं, कोई नमाज़ के फ़राइज़ को सह़ीह़ त़रीके़ से अदा नहीं करता, तो कोई वाजिबात नहीं जानता, किसी की क़िराअत दुरुस्त नहीं, तो किसी का सजदा ग़लत़ है । येही ह़ाल दीगर इ़बादात का है, ख़ुसूसन जिन लोगों ने ह़ज किया हो, उन को मा'लूम है कि ह़ज में किस क़दर ग़लत़ियां की जाती हैं, इन में अक्सरिय्यत उन लोगों की होती है जो येह कहते नज़र आते हैं कि बस ह़ज के लिये चले जाओ ! जो कुछ लोग कर रहे होंगे वोही हम भी कर लेंगे । जब इ़बादात का येह ह़ाल है, तो दीगर फ़र्ज़ उ़लूम का ह़ाल क्या होगा ? यूंही ह़सद, बुग़्ज़, कीना, तकब्बुर, ग़ीबत, चुग़ली, बोह्तान और न जाने कितने ऐसे उमूर हैं जिन के बारे में जानना फ़र्ज़ है लेकिन एक ता'दाद को इन की ता'रीफे़ं बल्कि इन की फ़र्ज़िय्यत तक का इ़ल्म नहीं होता । येह वोह चीज़ें हैं जिन का गुनाह होना उ़मूमन लोगों को मा'लूम होता है और वोह चीज़ें जिन के बारे में बिल्कुल बे ख़बर हैं जैसे मद्रसा और दीगर बहुत सी चीज़ें ऐसी हैं जिन के बारे में लोगों को येह तक मा'लूम नहीं कि इन के कुछ मसाइल भी हैं, बस हर त़रफ़ एक अ़जीब सी कैफ़िय्यत है, ऐसी सूरत में हमें चाहिये कि ख़ुद भी इ़ल्मे दीन सीखें और दूसरों को भी इ़ल्मे दीन सीखने की तरग़ीब दिलाएं । अगर तमाम वालिदैन अपनी औलाद को, तमाम मोअ़ल्लिमात अपनी त़ालिबात को इ़ल्मे दीन की त़रफ़ लगा दें, तो कुछ ही अ़र्से में हर त़रफ़ इ़ल्मे दीन का दौर दौरा हो जाएगा और लोगों के मुआ़मलात ख़ुद बख़ुद शरीअ़त के मुत़ाबिक़ होते जाएंगे ।