Book Name:Faizan e Imam Bukhari
रहती हैं, चीज़ों के ह़िसाब किताब में अक्सर परेशानी का शिकार हो जाती हैं, नमाज़ों की रक्आ़त के बारे में शुकूको शुब्हात में मुब्तला हो जाती हैं कि कितनी पढ़ लीं और कितनी बाक़ी रह गईं ? किसी किताब या रिसाले को कई कई बार पढ़ लेने के बा वुजूद भी उस के मज़ामीन या मसाइल हमारे दिलो दिमाग़ में मह़फ़ूज़ नहीं हो पाते । बहर ह़ाल अगर हम अपने ह़ाफ़िज़े को मज़बूत़ बनाना चाहती हैं, भूलने की बीमारी से नजात पाना चाहती हैं, ह़ाफ़िज़े को मज़बूत़ बनाने के त़रीके़ जानना चाहती हैं और भूलने की बीमारी पैदा करने वाले अस्बाब के बारे में मा'लूमात ह़ासिल करना चाहती हैं, तो इस के लिये मक्तबतुल मदीना की किताब "ह़ाफ़िज़ा कैसे मज़बूत़ हो ?" का मुत़ालआ़ फ़रमाइये ।
ह़ाफ़िज़ा मज़बूत़ करने का आसान वज़ीफ़ा
اَللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلِّمْ وَبَارِکْ عَلٰی سَیِّدِنَا مُحَمَّدِ نِ النَّبِیِّ الْکَامِلِ وَعَلٰی اٰلِہٖ کَمَا لَا نِھَایَۃَ لِکَمَالِکَ وَعَدَدَ کَمَالِہٖ
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ इस दुरूदे पाक की फ़ज़ीलत नक़्ल फ़रमाते हैं : अगर किसी शख़्स को निस्यान या'नी भूल जाने की बीमारी हो, तो वोह मग़रिब और इ़शा के दरमियान इस दुरूदे पाक को कसरत से पढ़े, اِنْ شَآءَ اللّٰہ ह़ाफ़िज़ा क़वी हो जाएगा । (मदनी पंजसूरह, स. 169)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! उ़मूमन देखा गया है कि जब कोई अपने किसी कारनामे के सबब मश्हूर हो जाए, तो वोह अपने आप को "कुछ" समझने लगती है, दूसरों को ह़क़ारत की नज़र से देखती है, अपने काम काज अपने हाथों से करने में शर्म और ज़िल्लत मह़सूस करती है, दुन्यवी ह़िर्स व लालच और मज़ीद शोहरत का भूत उस पर सुवार हो जाता है और वोह दुन्यवी लज़्ज़ात में डूब कर फ़िक्रे आख़िरत से ग़ाफ़िल हो जाती है लेकिन क़ुरबान जाइये ! ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ पर ! लाखों ह़दीसें याद कर लेने के बा वुजूद ग़ुरूरो तकब्बुर को कभी अपने क़रीब भी भटकने न दिया, आ़जिज़ी व इन्केसारी का दामन थामे रखा, अ़मली त़ौर पर सादगी अपनाई और दौराने त़ालिबे इ़ल्मी से ही ज़ोह्दो क़नाअ़त को इख़्तियार फ़रमा लिया । चुनान्चे,
इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की आ़जिज़ी व इन्केसारी
आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के ख़ुसूसी शागिर्द मुह़म्मद बिन ह़ातिम वर्राक़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ बयान करते हैं : एक मरतबा ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ बुख़ारा के क़रीब मुसाफ़िरों के ठहरने का मकान बना रहे थे, ख़िदमत करने वाले और अ़क़ीदत मन्द ह़ज़रात भी आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के साथ थे मगर इस के बा वुजूद आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ अपने हाथों से ईटें उठा उठा कर दीवार में लगा रहे थे । मैं ने आगे बढ़ कर कहा : आप रहने दीजिये, येह ईटें मैं लगा देता हूं । इरशाद फ़रमाया : क़ियामत के दिन येह अ़मल मुझे फ़ाइदा देगा । (ارشاد الساری،ترجمۃ الامام بخاری،۱/۶۵)