Book Name:Faizan e Imam Bukhari
"अमीरुल मोमिनीन फ़िल ह़दीस", "ह़ाफ़िज़ुल ह़दीस", "मुह़द्दिस", "मुफ़्ती", "ह़िबरुल इस्लाम" वग़ैरा आपرَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के मश्हूर अल्क़ाबात हैं ।
आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के असातिज़ा की ता'दाद
(ह़ज़रते सय्यिदुना) इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के असातिज़ए किराम की ता'दाद 1080 है । (नुज़्हतुल क़ारी, 1 / 119)
आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के शागिर्दों की ता'दाद
आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : (ह़ज़रते सय्यिदुना) इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने इन्तिक़ाल फ़रमाया (तो) 90000 शागिर्द मुह़द्दिस (या'नी इ़ल्मे ह़दीस के जानने वाले) छोड़े । (मल्फ़ूज़ाते आ'ला ह़ज़रत, स. 238)
आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के वालिदे मोह़्तरम का मुख़्तसर तआ़रुफ़
ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के वालिदे माजिद ज़बरदस्त आ़लिमे दीन थे, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ, इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के उस्ताज़, ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन मुबारक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की सोह़बत में रहते थे, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ रिवायत फ़रमाने वाले और इ़ल्मे ह़दीस के जानने वाले थे, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ, ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन मुबारक, ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम मालिक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْھِمَا, इन के शागिर्दों और उस ज़माने के इ़ल्मे ह़दीस जानने वालों से रिवायत करते थे, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की दुआ़एं बहुत ज़ियादा मक़्बूल होती थीं, ऐसे कि बारगाहे इलाही में अ़र्ज़ करते कि "मेरी सब दुआ़एं दुन्या ही में न क़बूल कर ले, कुछ आख़िरत के लिये रहने दे ।" ह़लाल खाने के ऐसे पाबन्द थे कि ह़राम तो ह़राम, मश्कूक चीज़ों से भी बचते थे, ह़त्ता कि विसाले ज़ाहिरी के वक़्त फ़रमाया : मेरे पास जितना भी माल है, उस में एक दिरहम भी शको शुब्हे वाला नहीं है । (नुज़्हतुल क़ारी, 1 / 107, मुलख़्ख़सन, ارشاد السارى، ترجمۃ الامام بخاری، ۱/۵۵)
इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की बीनाई लौट आई
ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ अभी छोटी उ़म्र के थे कि आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के वालिदे माजिद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का इन्तिक़ाल हो गया और फिर परवरिश की तमाम तर ज़िम्मेदारियां आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की वालिदए माजिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا ने संभालीं । बचपन शरीफ़ में ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम बुख़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की आंखों की रौशनी जाती रही, वालिदए माजिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا इस सदमे से रोती रहतीं और गिड़गिड़ा कर दुआ़ मांगा करतीं । एक रात सोते में क़िस्मत का सितारा चमक उठा, दिल की आंखें खुल गईं, ख़्वाब में देखा कि ह़ज़रते सय्यिदुना इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام तशरीफ़ लाए हैं और फ़रमा रहे हैं कि आप अपने बेटे की आंखों की रौशनी की वापसी के लिये दुआ़एं मांगती रही हैं, मुबारक हो ! कि आप की दुआ़ क़बूल हो चुकी है, अल्लाह पाक ने आप के बेटे की आंखों की रौशनी बह़ाल फ़रमा दी है