Waqt Ki Qadr o Qeemat Ma Waqt Zaya Karnay Walay Chand Umoor Ki Nishandahi

Book Name:Waqt Ki Qadr o Qeemat Ma Waqt Zaya Karnay Walay Chand Umoor Ki Nishandahi

और कई जाएदादें ह़ासिल करने के बा'द भी उन का दिल नहीं भरता, माल जम्अ़ करने की लालच कम होने के बजाए मज़ीद बढ़ती ही चली जाती है ।

याद रखिये ! माल जम्अ़ करना मुत़्लक़न बुरा नहीं, माल वोही बुरा है कि जिस के ह़ुक़ूके़ वाजिबा (मसलन ज़कात, फ़ित़्रा वग़ैरा) अदा न किये जाएं, माल वोही बुरा है जो हमें शरई़ अह़काम पर अ़मल करने, मौत, क़ब्रो ह़श्र के मुआ़मलात, अच्छे आ'माल व अच्छी सोह़बत से ग़ाफ़िल कर दे । लिहाज़ा वक़्त की अहम्मिय्यत को समझने की कोशिश कीजिये और जितनी ज़रूरत हो उतना ही रिज़्के़ ह़लाल जम्अ़ कीजिये क्यूंकि ज़िन्दगी बार बार नहीं मिलती । उन अह़ादीस व रिवायात को भी ज़ेहन नशीन रखिये जिन में वक़्त की अहम्मिय्यत के बारे में रहनुमाई की गई है । आइये ! बत़ौरे तरग़ीब वक़्त की अहम्मिय्यत पर 3 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सुनते हैं :

1.      इरशाद फ़रमाया : दो ने'मतें ऐसी हैं जिन के बारे में बहुत से लोग धोके में हैं : (1) सिह़्ह़त और (2) फ़ुरसत । (بخاری،کتاب الرقاق،باب ماجاء فی الرقاق …الخ:،۴/۲۲۲،حدیث:۶۴۱۲)

2.      इरशाद फ़रमाया : पांच चीज़ों को पांच चीज़ों से पहले ग़नीमत जानो । (1) जवानी को बुढ़ापे से पहले । (2) सिह़्ह़त को बीमारी से पहले । (3) मालदारी को मोह़्ताजी से पहले । (4) फ़ुरसत को मश्ग़ूलिय्यत से पहले और (5) ज़िन्दगी को मौत से पहले । (مستدرک،کتاب الرقاق، ۵/۴۳۵، حدیث: ۷۹۱۶)

3.      इरशाद फ़रमाया : रोज़ाना सुब्ह़ जब सूरज त़ुलूअ़ होता है, तो उस वक़्त "दिन" येह ए'लान करता है : अगर आज कोई अच्छा काम करना है, तो कर लो, आज के बा'द मैं कभी पलट कर नहीं आऊंगा ।

 (شُعَبُ الایمان، باب فی الصیام، ماجاء فی لیلۃ النصف من الشعبان، ۳ / ۳۸۶، حدیث:۳۸۴۰ ملخصاً)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा अह़ादीसे मुबारका सुन कर ख़ुसूसन उन लोगों को ख़्वाबे ग़फ़्लत से बेदार हो जाना चाहिये जो घन्टों घन्टों होटलों, फ़ुज़ूल बैठकों, पार्कों, मख़्लूत़ तफ़रीह़ गाहों (या'नी ऐसी तफ़रीह़ गाहें जहां ग़ैर मर्द और ग़ैर औ़रतें जम्अ़ होते हों, ख़ूब बे पर्दगी के ज़रीए़ गुनाहों का बाज़ार गर्म होता है), अख़बारात का मुत़ालआ़ करने, बार बार आईना देखने, फ़िल्में, ड्रामे या मूसीक़ी से भरपूर प्रोग्राम देखने, सुनने, मुल्की व सियासी ह़ालात और मैचों पर तबसिरे करने, किर्कट या फ़ुटबॉल खेलने, देखने या इन की तफ़्सीलात सुनने, मोबाइल या कम्प्यूटर पर गेम्ज़ खेलने, नाइट पेकेजिज़ के ज़रीए़ ना मह़रमों से फ़ोन पर बातें करने और सोशल मीडिया (Social Media) का फ़ुज़ूल या गुनाह भरा इस्ति'माल करने में वक़्त की ने'मत को बरबाद करते और गोया दुन्या व आख़िरत में ह़सरत व शर्मिन्दगी का सामान करते हैं, ह़ालांकि अगर येही वक़्त नमाज़, रोज़ों, ज़िक्रो दुरूद, तिलावत, ह़म्दो ना', वालिदैन की ख़िदमत, नेकी की दा'वत, क़ब्रो आख़िरत के मुआ़मलात की तय्यारी, औलाद की तरबिय्यत और इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने जैसे नेक कामों में गुज़रता, तो यक़ीनन दुन्या व आख़िरत में इस की बरकतें नसीब होतीं ।

 صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!     صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد