Waqt Ki Qadr o Qeemat Ma Waqt Zaya Karnay Walay Chand Umoor Ki Nishandahi

Book Name:Waqt Ki Qadr o Qeemat Ma Waqt Zaya Karnay Walay Chand Umoor Ki Nishandahi

तो ऐसा लगता है कि जैसे येह अपनी ज़िन्दगी के मक़्सद को ही भुला बैठे हैं । याद रखिये ! हमें येह ज़िन्दगी इस लिये नहीं दी गई कि हम इस को दुन्या की रंगीनियों और मोज मस्तियों में गुज़ारें बल्कि हमें अल्लाह पाक की इ़बादत, उस के अह़कामात पर अ़मल करने और उस की ना फ़रमानी वाले कामों से बचने के लिये दुन्या में भेजा गया है, येह मौक़अ़ भी सांसें बाक़ी रहने तक हमें मिला हुवा है । अल्लाह करीम हमें अपनी ज़िन्दगी के इस ह़क़ीक़ी मक़्सद को समझने की तौफ़ीक़ नसीब फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ

 صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!     صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! यक़ीनन येह ज़िन्दगी चन्द रोज़ा है, अगर हम इस को बे मक़्सद कामों में ज़ाएअ़ करने के बजाए हर काम को उस के वक़्त में करेंगे, गुनाहों से बचते हुवे नेकियों में गुज़ारेंगे, तो हमारी दुन्या भी अच्छी होगी और आख़िरत भी बेहतर हो जाएगी । हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن वक़्त के बड़े क़द्रदान साबित हुवे, तो आज तक उन के चर्चे अ़वाम व ख़वास की ज़बानों पर जारी हैं, मसलन सह़ाबए किराम, अहले बैते अत़्हार, ताबेई़न, तब्ए़ ताबेई़न رِضْوَانُ اللّٰہ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن, औलियाए कामिलीन, मुह़द्दिसीन, मुफ़स्सिरीन, उ़लमाए दीन और सूफ़ियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن वग़ैरा वोह अ़ज़ीम हस्तियां हैं कि जिन का ज़िक्रे ख़ैर करना हम अपने लिये बाइ़से सआ़दत समझते हैं और इन का नाम आते ही मुंह से अचानक رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ और رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ जारी हो जाता है । क्यूं ? इस लिये कि वोह ह़ज़रात वक़्त की क़द्र व अहम्मिय्यत से अच्छी त़रह़ वाक़िफ़ थे । आइये ! वक़्त के इन क़द्रदानों के 5 इरशादात सुन कर नसीह़त के मदनी फूल चुनते हैं । चुनान्चे,

वक़्त के क़द्रदानों के इरशादात

1.   अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते मौलाए काइनात, अ़लिय्युल मुर्तज़ा, शेरे ख़ुदा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाते हैं : येह दिन तुम्हारी ज़िन्दगी के सफ़ह़ात हैं, इन को अच्छे आ'माल से ज़ीनत बख़्शो ।

2.   मश्हूर सह़ाबिये रसूल, ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह इबने मस्ऊ़द رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाते हैं : मैं अपनी ज़िन्दगी के गुज़रे हुवे उस दिन के मुक़ाबले में किसी चीज़ पर शर्मिन्दा नहीं होता, जो दिन मेरा नेक आ'माल में इज़ाफे़ से ख़ाली हो ।

3.   करोड़ों शाफे़इ़य्यों के अ़ज़ीम पेशवा, ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम शाफे़ई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं एक मुद्दत तक अल्लाह वालों की सोह़बत से फै़ज़याब होता रहा । उन की सोह़बत से मुझे दो अहम बातें सीखने को मिलीं : (1) वक़्त तलवार की त़रह़ है, तुम इस को (नेक आ'माल के ज़रीए़) काटो, वरना (फ़ुज़ूलिय्यात में मश्ग़ूल कर के) येह तुम को काट देगा । (2) अपने नफ़्स की ह़िफ़ाज़त करो, अगर तुम ने इस को अच्छे काम में मश्ग़ूल न रखा, तो येह तुम को किसी बुरे काम में मश्ग़ूल कर देगा ।