Waqt Ki Qadr o Qeemat Ma Waqt Zaya Karnay Walay Chand Umoor Ki Nishandahi

Book Name:Waqt Ki Qadr o Qeemat Ma Waqt Zaya Karnay Walay Chand Umoor Ki Nishandahi

दीगर मुबल्लिग़ीने दा'वते इस्लामी के सुन्नतों भरे बयानात, ना'त व तिलावत, फ़र्ज़ उ़लूम कोर्स, इ़ल्मे दीन से माला माल रंग बिरंगे क़ीमती मदनी फूलों की ख़ुश्बूओं से महकते हुवे मदनी मुज़ाकरों वाले मेमोरी कार्डज़ हदिय्यतन त़लब कीजिये और तवज्जोह के साथ सुनिये ।

जी हां ! इ़ल्मे दीन का शौक़ रखने वालों के लिये दा'वते इस्लामी की "मजलिसे आई-टी" की त़रफ़ से मुख़्तलिफ़ ऐप्लीकेशन्ज़ (Applications) भी मन्ज़रे आ़म पर आ चुकी हैं । मसलन मौलाना मुह़म्मद इल्यास क़ादिरी, अल्ह़ाज उ़बैद रज़ा अ़त़्त़ारी, ह़ाजी मुह़म्मद इ़मरान अ़त़्त़ारी, अवक़ातुस्सलात (Prayer Times), अल क़ुरआनुल करीम, रूह़ानी इ़लाज, मदनी इनआ़मात, मदनी चेनल, दारुल इफ़्ता अहले सुन्नत, ह़ज्जो उ़मरह, ज़ेहनी आज़माइश (क्विज़ ऐप्लीकेशन), कलिमा ऐन्ड दुआ़, तजहीज़ो तक्फ़ीन, कलामे आ'ला ह़ज़रत और मदनी क़ाइ़दा वगै़रा । इन ऐप्लीकेशन्ज़ (Applications) के ज़रीए़ भी मा'लूमात का ढेरों ख़ज़ाना हाथ आएगा । اِنْ شَآءَ اللّٰہ

3﴿...खे़ल कूद में वक़्त बरबाद करना

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! वक़्त ज़ाएअ़ करने वाले कामों में से एक काम खेल कूद की बुरी आ़दत भी है । मुख़्तलिफ़ खेल तमाशे हमारी नौजवान नस्ल की सलाह़िय्यत व क़ाबिलिय्यत को दीमक की त़रह़ चाट रहे हैं । आज जिसे देखिये खेल का शौक़ीन नज़र आता और इस शौक़ में महारत ह़ासिल कर के शोहरत के ख़्वाब देखता है । कोई किर्कट में, तो कोई फ़ुटबॉल में नाम कमाना चाहता है, कोई हॉकी, टेबल टेनिस का मश्हूर प्लेयर बनने के सुहाने सपने देखता है, कोई स्नूकर, केरम बोर्ड में ख़ुद को चेम्पियन समझता, तो कोई पतंग बाज़ी, कबूतर बाज़ी, जुवा, शत़रंज और न जाने कैस कैसे अ़जीबो ग़रीब खेलों का शौक़ीन नज़र आता है । किर्कट के बा'ज़ शाइक़ीन ऐसे भी होते हैं जो सारा दिन किर्कट खेलते, ख़ूब शोरो ग़ुल मचाते और मुसलमानों के आराम में ख़लल का बाइ़स बनते हैं । अल्लाह पाक हमें ऐसे खेलों से दूर रखे जो उस की और उस के प्यारे मह़बूब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की नाराज़ी या वक़्त की बरबादी का सबब बनते हों । अल्लाह पाक हमें फ़र्ज़ व नफ़्ल इ़बादात का ज़ौक़ो शौक़ अ़त़ा फ़रमाए । آمین

4﴿...आवारा गर्दी और बुरी सोह़बत

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! जो लोग वक़्त की क़द्र जानते हैं, वोह अपना वक़्त ज़ाएअ़ करने के बजाए अपना हर काम वक़्त पर करने के आ़दी होते हैं । ऐसों को मुआ़शरे में इ़ज़्ज़त की निगाह से देखा जाता है और जो सुस्ती व काहिली के सबब अपना हर काम ताख़ीर से करते हैं, वोह कोई जुदा मक़ाम भी नहीं बनाते और अपना वक़्त अलग बरबाद करते हैं । बा'ज़ों के अ़मल से तो ऐसा मा'लूम होता है कि गोया उन की ज़िन्दगी का कोई मक़्सद ही नहीं, दोस्तों के साथ गलियों, बाज़ारों में आवारा गर्दी करना, आए दिन अपना वक़्त और पैसा लगा कर तफ़रीह़ी मक़ामात पर जाना और गुनाह करना, गली के कोनों और चाय के होटलों पर कई कई घन्टे फ़ुज़ूल गप्पे हांकना, सारा सारा दिन फ़िल्में, ड्रामे और मैच देखना, कानों में हेन्ड फ़्री लगाए गाने सुनने वग़ैरा कामों से