Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa
ज़ियादा है । जब वोह आ़बिद नींद से बेदार हुवा, तो ख़्वाब के बारे में सोचा फिर ख़ुद ही कहने लगा : येह तो मह़्ज़ ख़्वाब है, इस का क्या ए'तिबार ! लिहाज़ा उस ने ख़्वाब की त़रफ़ तवज्जोह न दी । कुछ अ़र्से बा'द उसे फिर इसी त़रह़ ख़्वाब में कहा गया कि फ़ुलां मोची तुझ से अफ़्ज़ल है मगर इस बार भी उस ने ख़्वाब की त़रफ़ कोई तवज्जोह न दी, तीसरी मरतबा फिर उसे ख़्वाब में येही कहा गया । बार बार ख़्वाब में मोची की फ़ज़ीलत के बारे में सुन कर वोह पहाड़ से उतरा और उस मोची के पास पहुंचा । मोची ने जब उसे देखा, तो अपना काम छोड़ कर ता'ज़ीमन खड़ा हो गया और बड़ी अ़क़ीदत से उस आ़बिद (या'नी इ़बादत गुज़ार) शख़्स के हाथ चूमने के बा'द अ़र्ज़ गुज़ार हुवा : आप को किस चीज़ ने इ़बादत ख़ाने से निकलने पर मजबूर किया है ? वोह आ़बिद कहने लगा : मैं तेरी वज्ह से यहां आया हूं । मुझे बताया गया है कि अल्लाह करीम की बारगाह में तेरा रुत्बा मुझ से ज़ियादा है, इस वज्ह से मैं तेरी ज़ियारत करने आया हूं । मुझे बता कि वोह कौन सा अ़मल है जिस की वज्ह से तुझे अल्लाह करीम की बारगाह में आ'ला मक़ाम ह़ासिल है ? वोह मोची ख़ामोश रहा, गोया वोह अपना अ़मल बताना नहीं चाहता था फिर कहने लगा : मेरा और तो कोई ख़ास अ़मल नहीं, हां ! इतना ज़रूर है कि मैं सारा दिन रिज़्के़ ह़लाल कमाने में मश्ग़ूल रहता हूं और ह़राम माल से बचता हूं फिर अल्लाह करीम मुझे सारे दिन में जितना रिज़्क़ अ़त़ा फ़रमाता है, मैं उस में से आधा उस की राह में सदक़ा कर देता हूं और आधा अपने अहलो इ़याल पर ख़र्च करता हूं । दूसरा अ़मल येह है कि मैं कसरत से रोज़े रखता हूं, इस के इ़लावा कोई और चीज़ मेरे अन्दर ऐसी नहीं जो बाइ़से फ़ज़ीलत हो । येह सुन कर आ़बिद (या'नी इ़बादत गुज़ार) उस नेक मोची के पास से चला गया और दोबारा इ़बादत में मश्ग़ूल हो गया । कुछ अ़र्से बा'द फिर उसे ख़्वाब में कहा गया : उस मोची से पूछो कि किस चीज़ के ख़ौफ़ ने तुम्हारा चेहरा ज़र्द (या'नी पीला) कर दिया है ? चुनान्चे, वोह आ़बिद (या'नी इ़बादत गुज़ार) दोबारा मोची के पास आया और उस से पूछा : तुम्हारा