Book Name:Fazilat Ka Maiyar Taqwa
में जितना रिज़्क़ अ़त़ा फ़रमाता है, मैं उस में से आधा उस की राह में सदक़ा कर देता हूं और आधा अपने अहलो इ़याल पर ख़र्च करता हूं । दूसरा अ़मल येह है कि मैं कसरत से रोज़े रखता हूं, इस के इ़लावा कोई और चीज़ मेरे अन्दर ऐसी नहीं जो बाइ़से फ़ज़ीलत हो । येह सुन कर आ़बिद (या'नी इ़बादत गुज़ार) उस नेक मोची के पास से चला गया और दोबारा इ़बादत में मश्ग़ूल हो गया । कुछ अ़र्से बा'द फिर उसे ख़्वाब में कहा गया : उस मोची से पूछो कि किस चीज़ के ख़ौफ़ ने तुम्हारा चेहरा ज़र्द (या'नी पीला) कर दिया है ? चुनान्चे, वोह आ़बिद (या'नी इ़बादत गुज़ार) दोबारा मोची के पास आया और उस से पूछा : तुम्हारा चेहरा ज़र्द (या'नी पीला) क्यूं है ? आख़िर तुम्हें किस चीज़ का ख़ौफ़ है ? मोची ने जवाब दिया : जब भी मैं किसी शख़्स को देखता हूं, तो मुझे येह गुमान होता है कि येह शख़्स मुझ से अच्छा है, येह जन्नती है और मैं जहन्नम के लाइक़ हूं, मैं अपने आप को सब से ह़क़ीर जानता हूं और अपने आप को सब से ज़ियादा गुनाहगार तसव्वुर करता हूं और मुझे हर वक़्त जहन्नम का ख़ौफ़ खाए जा रहा है, बस येही वज्ह है कि मेरा चेहरा ज़र्द (या'नी पीला) हो गया है । वोह आ़बिद (या'नी इ़बादत गुज़ार) वापस अपने इ़बादत ख़ाने में चला गया । ह़ज़रते सय्यिदुना ख़ुल्द बिन अय्यूब رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : उस मोची को उस इ़बादत गुज़ार शख़्स पर इसी लिये फ़ज़ीलत दी गई कि वोह दूसरों के मुक़ाबले में अपने आप को ह़क़ीर और अपने इ़लावा सब को जन्नती समझता था ।
(उ़यूनुल ह़िकायात, स. 103)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि जो ख़ुश नसीब मुसलमान दुन्या की रंगीनियों से मुंह मोड़ कर, गुनाहों से तअ़ल्लुक़ ख़त्म कर के सिर्फ़ रिज़ाए इलाही के लिये इ़बादतो रियाज़त और तक़्वा व परहेज़गारी को अपना मा'मूल बना लेता है, आ़जिज़ी करते हुवे ख़ुद को ह़क़ीर और दूसरों को बेहतर तसव्वुर करता है, नफ़्ल रोज़े और सदक़ा व ख़ैरात को अपना मा'मूल बना लेता