Tarke Jamat Ki Waeeden

Book Name:Tarke Jamat Ki Waeeden

        सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان के इसी त़र्ज़े अ़मल को बयान करते हुवे अल्लाह करीम अपने पाक कलाम क़ुरआने मजीद, फ़ुरक़ाने ह़मीद में पारह 18, सूरतुन्नूर की आयत नम्बर 37 में इरशाद फ़रमाता है :

رِجَالٌۙ-لَّا تُلْهِیْهِمْ تِجَارَةٌ وَّ لَا بَیْعٌ عَنْ ذِكْرِ اللّٰهِ وَ اِقَامِ الصَّلٰوةِ وَ اِیْتَآءِ الزَّكٰوةِ ﭪ-- (پ۱۸، النور:۳۷)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : वोह मर्द जिन को तिजारत और ख़रीदो फ़रोख़्त अल्लाह के ज़िक्र और नमाज़ क़ाइम करने और ज़कात देने से ग़ाफ़िल नहीं करती ।

        एक मरतबा ह़ज़रते सय्यिदुना इबने मसऊ़द رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने देखा कि बाज़ार वालों ने अज़ान सुनते ही अपना (तिजारती) सामान छोड़ा और नमाज़ के लिये उठ खड़े हुवे । इस पर आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने फ़रमाया कि इन्ही लोगों के ह़क़ में अल्लाह पाक ने आयत "رِجَالٌ لَّا تُلْہِیْہِمْ" नाज़िल फ़रमाई है । (معجم کبیر،عبد الله بن مسعودالخ، ۹/۲۲۲، حدیث:۹۰۷۹)

        मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! इस्लाम का अव्वलीन दौर कितना ख़ूब सूरत और रौशन था कि जब मुसलमान तक़्वा व परहेज़गारी के पैकर हुवा करते थे, वोह ह़ज़रात कस्बे ह़लाल के लिये तिजारत तो करते थे मगर यादे इलाही से हरगिज़ हरगिज़ ग़ाफ़िल न हुवा करते, शायद येही वज्ह है कि उस वक़्त रिज़्क़ व तिजारत में ह़ैरत अंगेज़ बरकत पाई जाती थी । इस के बर अ़क्स आज जब हम ने नमाज़ों से ग़फ़्लत इख़्तियार करते हुवे यादे इलाही से मुंह मोड़ा, तो कारोबार के ला ता'दाद वसाइल, रोज़गार के अन गिनत मवाके़अ़ और तरक़्क़ी के बे मिसाल ज़राएअ़ के बा वुजूद रिज़्क़ व माल में इज़ाफे़ और बरकत के बजाए हमारी ज़िन्दगानी तंग से तंग तर होती चली गई और क्यूं न हो कि पारह 16, सूरए طٰہٰ  की आयत नम्बर 124 में इरशादे ख़ुदावन्दी है :

وَ مَنْ اَعْرَضَ عَنْ ذِكْرِیْ فَاِنَّ لَهٗ مَعِیْشَةً ضَنْكًا وَّ نَحْشُرُهٗ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ اَعْمٰى(۱۲۴) (پ۱۶، طٰهٰ:۱۲۴)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और जिस ने मेरे ज़िक्र से मुंह फेरा, तो बेशक उस के लिये तंग ज़िन्दगी है ।

        सदरुल अफ़ाज़िल, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना सय्यिद मुह़म्मद नई़मुद्दीन मुरादाबादी عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰہ ِالْھَادِی "ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान" में इस आयत के तह़त