Book Name:Hajj Kay Fazail or Is Kay Ahkamaat
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ऐ प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो काश ! हमारी ज़िन्दगी में वोह मुबारक लम्ह़ात आएं कि हमें भी मक्कए मुअ़ज़्ज़मा की ह़ाज़िरी नसीब हो और वहां काबतुल्लाह शरीफ़ की ज़ियारत व त़वाफ़ के ह़सीन मनाज़िर देखने के साथ साथ वहां के मुक़द्दस मक़ामात की ज़ियारतों से मह़ज़ूज़ हों । اَلْحَمْدُلِلّٰہ मक्कतुल मुकर्रमा ऐसा बा बरकत और साह़िबे अ़ज़मत शहर है कि हर मुसलमान इस की ह़ाज़िरी की तमन्ना व ह़सरत रखता है । आइए ! अह़ादीसे मुबारका की रौशनी में इस शहरे मुक़द्दस के चन्द फ़ज़ाइल सुनते हैं ।
मक्के की गर्मी पर सब्र की फ़ज़ीलत
1. ह़ज़रते अनस बिन मालिक رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ से रिवायत है कि ताजदारे रिसालत صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : जो मक्के की गर्मी पर एक घड़ी सब्र करेगा, जहन्नम उस से एक सौ साल सी मसाफ़त दूर हो जाएगी । (اخبار مکۃ للفاکھی، ذکر الصبر علی حر مکۃ، الحدیث ۱۵۶۵/ ۱۵۶۶، ج۲، ص۳۱۰۔ ۳۱۱)
2. ह़ज़रते सई़द बिन जुबैर رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने फ़रमाया : जो शख़्स एक दिन मक्के में बीमार हो जाए, अल्लाह पाक उसे उस नेक अ़मल का सवाबो अ़त़ा फ़रमाता है जो वोह 7 साल से कर रहा होता है (लेकिन बीमारी की वज्ह से न कर सकता हो) और अगर वोह (बीमार) मुसाफ़िर हो, तो उसे दुगना अज्र अ़त़ा फ़रमाएगा । (ऐज़न)
3. रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : जिस शख़्स की ह़ज या उ़मरह करने की निय्यत थी और इसी ह़ालत में उसे ह़रमैन यानी मक्के या मदीने में मौत आ गई, तो अल्लाह पाक उसे बरोज़े क़ियामत इस त़रह़ उठाएगा कि उस पर न ह़िसाब होगा, न अ़ज़ाब । एक दूसरी रिवायत में है : वोह बरोज़े क़ियामत अम्न वाले लोगों में उठाया जाएगा ।(مصنف عبدالرزاق، ج۹، ص۱۷۴، الحدیث۱۷۴۷۹)
मक्कतुल मुकर्रमा में मोह़तात़ रहिए !
मक्कतुल मुकर्रमा में हर दम रह़मतों की छमाछम बारिशें बरसती हैं, लुत़्फ़ो करम का दरवाज़ा कभी बन्द नहीं होता, मांगने वाला कभी मह़रूम नहीं लौटता । ह़रमे मक्कए मुकर्रमा में एक नेकी, लाख नेकियों के बराबर है मगर येह भी याद रहे कि वहां का एक गुनाह भी लाख गुना है । अफ़्सोस ! सद करोड़ अफ़्सोस ! येह जानने के बा वुजूद भी वहां बिला तकल्लुफ़ गुनाहों का इर्तिकाब किया जाता है, मसलन क़िब्ला रुख़ या क़िब्ले को पीठ किए इस्तिन्जा करना ह़राम है नीज़ बद निगाही, दाढ़ी मुन्डाना, ग़ीबत, चुग़ली, झूट, वादा ख़िलाफ़ी, बिला वज्हे शरई़ मुसलमान की दिल आज़ारी, ग़ुस्से का गुनाह भरा निफ़ाज़, ईज़ा देह तल्ख़ कलामी वग़ैरहा जराइम करते वक़्त अक्सर लोगों को येह एह़सास तक नहीं होता कि हम जहन्नम का सामान कर रहे हैं ।
आह ! ह़रमे मक्कए पाक में अगर सिर्फ़ एक बार झूट बोल लिया, बिला इजाज़ते शरई़ किसी एक फ़र्द की दिल आज़ारी कर डाली, एक मरतबा ग़ीबत या चुग़ली का इर्तिकाब किया, तो किसी