Hajj Kay Fazail or Is Kay Ahkamaat

Book Name:Hajj Kay Fazail or Is Kay Ahkamaat

पाक हमारी ज़िन्दगी में भी वोह मुबारक लम्ह़ात लाए और हम भी सरकार صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم के दरबारे गौहर बार में ह़ाज़िर हो कर बसद एह़तिराम सलाम अ़र्ज़ करें ।

          यक़ीनन एक आ़शिके़ सादिक़ की दिली तमन्ना होती है कि उसे दियारे ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की ह़ाज़िरी नसीब हो जाए, ज़मानो मकान की वुस्अ़तें सिमट जाएं और वोह जितनी जल्दी हो सके चमनिस्ताने हबीब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم में पहुंच जाए । वोह इसी आरज़ू में तड़पता रेहता है और शामो सह़र दुआ़एं और इल्तिजाएं करता है और फिर जब मदीने की ह़ाज़िरी का मुज़्दए जां फ़िज़ां सुनता है, तो दिल की मुरझाई कलियां खिल उठती हैं, शोलए इ़श्क़ भड़क उठता है और आ़लमे वारफ़्तगी में अपनी जान निसार करने की ख़्वाहिश दिल में मचलने लगती है ।

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! मदीने शरीफ़ की त़रफ़ जाते हुवे तमाम रास्ते हो सके, तो नंगे पाउं, निगाहें झुकाए सफ़र कीजिए । जब मस्जिदे नबवी के क़रीब पहुंच जाएं और उस के  सब्ज़ सब्ज़ गुम्बद और मीनारे नूरबार नज़र आएं, तो ख़ूब जोशो ख़रोश और वालिहाना अन्दाज़ में दुरूदे पाक के गजरे निछावर कीजिए और रौज़ए रसूल पर ह़ाज़िरी के आदाब को भी मल्ह़ूज़े ख़ात़िर रखिए । रास्ते में निगाहें झुका कर चलने की तरग़ीब पर मुश्तमिल अमीरे अहले सुन्नत के अ़त़ा कर्दा "नेक आमाल" के रिसाले में नेक अ़मल नम्बर 11 भी है कि रास्ते में चलते हुवे या कार या बस वग़ैरा में सफ़र के दौरान ख़ुद को फ़ुज़ूल निगाही से बचाते हुवे क्या आज आप ने निगाहें नीची रखीं ? और बिला ज़रूरत इधर उधर देखने से अपने आप को बचाया ? (ज़हे नसीब ! किसी से बात करते वक़्त सामने वाले के चेहरे पर बिला ज़रूरत मुसल्सल नज़र जमी रेहने के बजाए नीची रहा करे)

ह़ाज़िरिए बारगाहे अक़्दस के आदाब

          सदरुश्शरीआ़, बदरुत़्त़रीक़ा, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ रौज़ए रसूल पर ह़ाज़िरी के आदाब बयान करते हुवे फ़रमाते हैं : ह़ाज़िरी से पेहले तमाम ज़रूरिय्यात से जिन का लगाव दिल बटने का बाइ़स हो, निहायत जल्द फ़ारिग़ हो, उन के सिवा किसी बेकार बात में मश्ग़ूल न हो, मअ़न वुज़ू व मिस्वाक करो और ग़ुस्ल बेहतर, सफ़ेद पाकीज़ा कपड़े पेहनो और नए बेहतर, सुरमा और ख़ुश्बू लगाओ और मुश्क अफ़्ज़ल, अब फ़ौरन आस्तानए अक़्दस की त़रफ़ निहायत ख़ुशूअ़ व ख़ुज़ूअ़ से मुतवज्जेह हो, रोना न आए, तो रोने का मुंह बनाओ और दिल को ब ज़ोर रोने पर लाओ और अपनी संग दिली(यानी दिलजम्ई़)से रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की त़रफ़ इल्तिजा करो । अब दरे मस्जिद पर ह़ाज़िर हो, सलातो सलाम अ़र्ज़ कर के थोड़ा ठेहरो जैसे सरकार से ह़ाज़िरी की इजाज़त मांगते हो, बिस्मिल्लाह केह कर सीधा पाउं पेहले रख कर हमातन अदब हो कर दाख़िल हो, इस वक़्त जो अदबो ताज़ीम फ़र्ज़ है, हर मुसलमान का दिल जानता है, आंख, कान, ज़बान, हाथ, पाउं (और) दिल सब ख़याले ग़ैर से पाक करो, मस्जिदे अक़्दस के नक़्शो निगार न देखो, अगर कोई ऐसा सामने आए जिस से सलाम कलाम ज़रूर हो, तो जहां तक बने कतरा जाओ, वरना ज़रूरत से ज़ियादा न बढ़ो फिर भी दिल सरकार ही की त़रफ़ हो ।