Hajj Kay Fazail or Is Kay Ahkamaat

Book Name:Hajj Kay Fazail or Is Kay Ahkamaat

करते हैं : ٭ जब सफ़र करना हो, तो बेहतर येह है कि पीर, जुमेरात या हफ़्ते को करे । (फ़तावा रज़विय्या, 23 / 400, मुलख़्ख़सन) ٭ सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने जुबैर बिन मुत़्इ़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को सफ़र में अपने सब दोस्तों से ज़ियादा ख़ुशह़ाल रेहने के लिए रवानगी से पेहले येह विर्द पढ़ने की तल्क़ीन फ़रमाई : (1) सूरए काफ़िरून (2) सूरए नस्र (3) सूरए इख़्लास (4) सूरए फ़लक़ (5) सूरए नास । हर सूरत एक एक बार और हर एक की इब्तिदा में بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْم और सब से आख़िर में भी एक बार बिस्मिल्लाह पूरी पढ़ लीजिए (इस त़रह़ सूरतें पांच होंगी और बिस्मिल्लाह शरीफ़ छे बार) । ह़ज़रते जुबैर बिन मुत़्इ़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाते हैं : मैं यूं तो माल वाला था मगर जब सफ़र करता, तो (सब दोस्तों से ज़ियादा) बुरे ह़ाल वाला हो जाता, जब से येह सूरतें सफ़र से पेहले हमेशा पढ़नी शुरूअ़ कीं, इन की बरकत से वापसी तक ख़ुशह़ाल और दौलतमन्द रेहता । (ابویعلیٰ،۶/۲۶۵، حدیث:۷۳۸۲) ٭ आईना, सुरमा, कंघा, मिस्वाक साथ रखे कि सुन्नत है । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा : 1, 6 / 1051) ٭ रास्ते की चढ़ाई की त़रफ़ या सीढ़ियों पर चढ़ते हुवे, बस वग़ैरा जब सड़क की ऊंची जानिब जा रही हो, तो "اَللّٰہُ اَکْبَر" और सीढ़ियों या निचली जानिब से उतरते हुवे "سُبْحٰنَ اللہ" कहिए । ٭ मन्ज़िल पर उतरते वक़्त येह पढ़िए : اَعُوْذُ بِکَلِمَاتِ اللّٰہِ التَّامَّاتِ مِنْ  شَرِّمَا خَلَق ط (तर्जमा : मैं अल्लाह करीम के कामिल कलिमात के वासित़े से सारी मख़्लूक़ के शर से पनाह मांगता हूं), اِنْ شَآءَ اللہ हर नुक़्सान से बचेगा । (حِصن حَصین،ص۸۲) ٭ दौराने सफ़र भी नमाज़ में हरगिज़ कोताही न हो । ٭ रास्ते में बस ख़राब हो जाए, तो ड्राईवर या मालिकाने बस वग़ैरा को कोसने और बकबक कर के अपनी आख़िरत दाव पर लगाने के बजाए सब्र से काम लीजिए और जन्नत की त़लब में ज़िक्रो दुरूद में मश्ग़ूल हो जाइए । ٭ भीड़ के मौक़अ़ पर किसी कमज़ोर या मरीज़ को देखें, तो सवाब की निय्यत से उस को बस वग़ैरा में इसरार कर के अपनी सीट पेश कर दीजिए ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!                                      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد