Book Name:Hajj Kay Fazail or Is Kay Ahkamaat
شَرِیْکَ لَکَ لَبَّـیْکَ، اِنَّ الْحَمْدَ وَالنِّعْمَۃَ لَکَ وَالْمُلْکَ لَا شَرِیْکَ لَکَ फिर फ़िरिश्ते उस को खींच कर मैदाने मह़शर तक ले जाएंगे । (الروض الفائق ص۶۶)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ह़ाजियों के लिए ह़ज के ज़रूरी मसाइल सीखना फ़र्ज़ है
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ह़ज अदा करने वाले पर फ़र्ज़ है कि वोह ह़ज के ज़रूरी मसाइल जानता हो । उ़मूमन ह़ुज्जाजे किराम त़वाफ़ व सई़ वग़ैरा में पढ़ी जाने वाली अ़रबी दुआ़ओं में ज़ियादा दिलचस्पी लेते हैं, अगर्चे येह भी बहुत अच्छा है जबकि दुरुस्त पढ़ सकते हों, अगर कोई येह दुआ़एं न भी पढ़े, तो गुनहगार नहीं मगर ह़ज के ज़रूरी मसाइल न जानना गुनाह है । लिहाज़ा ह़ज की अदाएगी से क़ब्ल पेहली फ़ुर्सत में इस के मसाइल सीखना ज़रूरी है, वरना ऐसा न हो कि कसीर माल ख़र्च करने के बा वुजूद हमारी नादानी और मसाइले ह़ज से ना वाक़िफ़िय्यत की बिना पर हमारा ह़ज ही अदा न हो । ह़ज के मसाइल और दीगर अहम मालूमात ह़ासिल करने के लिए शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी دَامَتْ بَرَکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की किताब "रफ़ीक़ुल ह़रमैन" मक्तबतुल मदीना से हदिय्यतन ख़रीद फ़रमाएं, ख़ुद भी पढ़ें और ह़ज व उ़मरह पर जाने वालों को तोह़फ़तन पेश करें ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ह़ाजी के पास सरमायए इ़श्क़ होना बहुत ज़रूरी है
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ह़ाजी जब मनासिके ह़ज अदा कर चुके, तो उसे चाहिए कि रौज़ए रसूल की ह़ाज़िरी के लिए मदीनए त़य्यिबा के सफ़रे सआ़दत पर रवाना हो जाए कि ज़ियारते (रौज़ए) अक़्दस क़रीब ब वाजिब है ।(बहारे शरीअ़त) सदरुश्शरीआ़, बदरुत़्त़रीक़ा, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती अमजद अ़ली आज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ह़ज अगर फ़र्ज़ है, तो ह़ज कर के मदीनए त़य्यिबा ह़ाज़िर हो । हां ! अगर मदीनए त़य्यिबा रास्ते में हो, तो बिग़ैर ज़ियारत ह़ज को जाना सख़्त मह़रूमी व क़सावते क़ल्बी है और इस ह़ाज़िरी को क़बूले ह़ज व सआ़दते दीनी व दुन्यवी के लिए ज़रीआ़ व वसीला क़रार दे और ह़ज नफ़्ल हो, तो इख़्तियार है कि पेहले ह़ज से पाक साफ़ हो कर मह़बूब के दरबार में ह़ाज़िर हो या सरकार में पेहले ह़ाज़िरी दे कर ह़ज की मक़्बूलिय्यत व नूरानिय्यत के लिए वसीला करे । ग़रज़ ! जो पेहले इख़्तियार करे, उसे इख़्तियार है मगर निय्यते ख़ैर दरकार है कि اِنَّمَا الْاَعْمَالُ بِالنِّیَّاتِ وَلِکُلِّ امْرِئٍ مَّانَویٰ आमाल का दारो मदार निय्यत पर है और हर एक के लिए वोह है जो उस ने निय्यत की । सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : जिस ने ह़ज किया और मेरी वफ़ात के बाद मेरी क़ब्र की ज़ियारत की, तो ऐसा है जैसे मेरी ह़यात में ज़ियारत से मुशर्रफ़ हुवा । (سنن الدار قطنی، کتاب الحج، باب المواقیت، الحدیث: ۲۶۶۷، ج۲، ص۳۵۱) और जिस ने ह़ज किया और मेरी ज़ियारत न की, उस ने मुझ पर जफ़ा की । (کشف الخفاء، الحدیث۲۴۵۸، ج۲، ص۲۱۸) अल्लाह