Shadi Aur Islami Talimaat

Book Name:Shadi Aur Islami Talimaat

फ़ात़िमा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا और मौला मुश्किल कुशा, ह़ज़रते अ़ली رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के निकाह़ को सामने रखना चाहिए । आइए ! सय्यिदा काइनात और ह़ज़रते अ़ली رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के निकाह़ और वलीमे का वाक़िआ़ सुनते हैं । चुनान्चे,

मौला अ़ली और ख़ातूने जन्नत का निकाह़

ह़ज़रते अ़ल्लामा अ़ब्दुल मुस्त़फ़ा आज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : 2 हिजरी में ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की सब से प्यारी बेटी, ह़ज़रते फ़ात़िमा  رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا की शादी ख़ाना आबादी ह़ज़रते अ़लिय्युल मुर्तज़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के  साथ हुई । येह शादी इन्तिहाई वक़ार और सादगी के साथ हुई । आक़ा करीम, صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم  ने ह़ज़रते अनस رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को ह़ुक्म दिया कि वोह ह़ज़रते अबू बक्र सिद्दीक़, ह़ज़रते उ़मर, ह़ज़रते उ़स्मान और ह़ज़रते अ़ब्दुर्रह़मान बिन औ़फ़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُم और दूसरे चन्द मुहाजिरीन व अन्सार رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُم को बुला कर लाएं । जब सह़ाबए किराम رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُم जम्अ़ हो गए, तो नबिय्ये करीम  صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने ख़ुत़्बा पढ़ा और निकाह़ पढ़ा दिया । (सीरते मुस्त़फ़ा, स. 248)

          वलीमे के बारे में अ़ल्लामा शुऐ़ब ह़रीफ़ीश رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने ह़ज़रते उम्मे सलमा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا के पास रखे हुवे दराहिम में से 10 दिरहम ह़ज़रते अ़ली رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को दिए और इरशाद फ़रमाया : इन से खजूर, घी और पनीर ख़रीद लो । फ़रमाते हैं : मैं येह चीज़ें ख़रीद कर आप की ख़िदमत में ह़ाज़िर हो गया । आप ने चमड़े का एक दस्तरख़ान मंगवाया और आस्तीनें चढ़ा कर खजूरों को घी में मसलने लगे और फिर पनीर के साथ इस त़रह़ मिलाया कि वोह ह़ल्वा बन गया । फिर इरशाद फ़रमाया : ऐ अ़ली ! जिसे चाहो बुला लाओ । मैं मस्जिद में गया और सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان से कहा : रसूले पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की दावत क़बूल करें । सब लोग उठ कर चल दिए । जब मैं ने आप की बारगाह में अ़र्ज़ की : लोग बहुत ज़ियादा हैं । तो आप ने चमड़े के दस्तरख़ान को एक रूमाल से ढांप दिया और इरशाद फ़रमाया : 10, 10 अफ़राद को दाख़िल करते जाओ । मैं ने ऐसा ही किया । सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان खा कर जाते रहे लेकिन खाने में बिल्कुल कमी न हुई, यहां तक कि रसूले अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की बरकत से 700 अफ़राद ने वोह ह़ल्वा खाया । (ह़िकायतें और नसीह़तें, स. 540, बि तग़य्युरिन क़लील)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!                                               صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! यक़ीनन शादियां तो बहुत हुई हैं, हो रही हैं और होती रहेंगी लेकिन ऐसी सादा मगर अ़ज़ीमुश्शान शादी सिर्फ़ मह़बूबीने ख़ुदा और मुक़र्रबीने मुस्त़फ़ा का ह़िस्सा है, नामो नुमूद और तकल्लुफ़ का नाम तक नहीं लेकिन रश्क हर मुसलमान को आता है । धूमधाम का कोई अता पता नहीं लेकिन चर्चा आज भी हो रहा है । नामवरी का कोई इरादा नहीं लेकिन डंके बज रहे हैं । येह बात नहीं कि येह शादी धूमधाम से नहीं हो सकती थी बल्कि अगर सरवरे काइनात, शाहे मौजूदात صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ख़ुद भी नहीं बल्कि सिर्फ़ अपने ग़ुलामों को ही इशारा कर देते, तो उस की मिस्ल व बराबरी करना किसी के बस की बात न रेहती लेकिन वालिए उम्मत