Book Name:Shadi Aur Islami Talimaat
इसी त़रह़ अपने बड़े बेटे, अल्ह़ाज मौलाना अबू उसैद, उ़बैद अ़त़्त़ारी मदनी مُدَّ ظِلُّہُ الْعَالِی के निकाह़ की तक़रीब बर्क़ी क़ुमक़ुमों से जगमगाते शादी हॉल के बजाए दावते इस्लामी के तीन रोज़ा सुन्नतों भरे बैनल अक़्वामी इजतिमाअ़ में 18 अक्तूबर 2003 को शबे इतवार बड़ी सादगी के साथ अन्जाम पाई । तिलावत के बाद पुरसोज़ नातें पढ़ी गईं, ख़ुत़्बए निकाह़ पढ़ कर अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرَکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ही ने निकाह़ पढ़ाया जबकि रुख़्सती की तक़रीब शव्वालुल मुकर्रम 1426, ब मुत़ाबिक़ 2005 की दसवीं शब रखी गई । (तज़किरए अमीरे अहले सुन्नत, क़िस्त़ : 3, स. 32 ता 33, मुल्तक़त़न)
पुर तकल्लुफ़ जहेज़ लेने से इन्कार
मौलाना ह़ाजी उ़बैद रज़ा مُدَّ ظِلُّہُ الْعَالِی की शादी में जब लड़की वालों ने पुर तकल्लुफ़ जहेज़ देना चाहा, तो शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرَکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने उन्हें सादगी अपनाने की तल्क़ीन की । दूसरी त़रफ़ साह़िबज़ादए अ़त़्त़ार مُدَّ ظِلُّہُ الْعَالِی भी पलंग वग़ैरा की बजाए चटाई क़बूल करने पर रिज़ामन्द हुवे । (तज़किरए अमीरे अहले सुन्नत, क़िस्त़ : 3, स. 34)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرَکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के बच्चों की शादी से बख़ूबी अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि आज के इस पुर फ़ितन दौर में भी अगर मुसलमान पक्का इरादा कर लें, तो शादी बियाह के मुआ़मलात इस्लामी तालीमात के ऐ़न मुत़ाबिक़ अदा कर सकते हैं, अगर्चे अब येह कुछ मुश्किल ज़रूर है मगर ना मुमकिन नहीं । शादी बियाह और दीगर तक़रीबात में इस्लामी तालीमात पर अ़मल का जज़्बा पाने के लिए आ़शिक़ाने रसूल की दीनी तह़रीक दावते इस्लामी से वाबस्ता हो जाएं, हर जुमेरात को होने वाले इस्लामी भाइयों के इजतिमाअ़ में पाबन्दी से शिर्कत की निय्यत करें और हफ़्ते को बाद नमाज़े इ़शा होने वाले मदनी मुज़ाकरे को देखने की निय्यत करें, اِنْ شَآءَ اللّٰہ इस की बरकत से गुनाहों से बचने, नेकियां करने और दीनी तालीमात पर अ़मल करने का ज़ेह्न बनेगा ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आइए ! मक्तबतुल मदीना के रिसाले "तज़किरए अमीरे अहले सुन्नत (क़िस्त़ : 8)" से औलाद की तरबियत से मुतअ़ल्लिक़ चन्द आदाब सुनते हैं : (याद रखिए !) औलाद को ना फ़रमान और बाग़ी बनाने में बसा अवक़ात ख़ुद वालिदैन का अपना भी किरदार होता है, इस लिए कि वालिदैन की अक्सरिय्यत ख़ुद तरबियत याफ़्ता नहीं होती, येही वज्ह है कि वोह औलाद की भी सह़ीह़ मानों में तरबियत नहीं कर पाती । बच्चों पर बात बात पर चिल्लाते रेहना बे वुक़ूफ़ी है कि इस त़रह़ बच्चे मज़ीद आज़ाद हो जाते हैं, लिहाज़ा बार बार डांटने के बजाए ज़ियादा