Shadi Aur Islami Talimaat

Book Name:Shadi Aur Islami Talimaat

صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने सादगी को सुन्नत बनाया ताकि उम्मत परेशानी और क़र्ज़ों के बोझ तले न दबे । इसी जानिब ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ तवज्जोह दिलाते हुवे इरशाद फ़रमाते हैं : सब से बेहतर तो येह होगा कि अपनी औलाद के निकाह़ के लिए ह़ज़रते ख़ातूने जन्नत, शाहज़ादिए इस्लाम, फ़ात़िमतुज़्ज़हरा (رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہَا) के निकाह़े पाक को नुमूना बनाओ । (इस्लामी ज़िन्दगी, स. 54)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! निकाह़ न सिर्फ़ सुन्नत है बल्कि इन्सान के फ़ित़री तक़ाज़ों की तक्मील के लिए इस्लाम की अ़त़ा कर्दा अ़ज़ीम नेमत भी है, इस लिए हमें चाहिए कि निकाह़ का इस्लामी अन्दाज़ इख़्तियार करें और शादी बियाह के तमाम तर मुआ़मलात को ऐ़न इस्लामी तालीमात के मुत़ाबिक़ करें । शादियों में आतशबाज़ी, औ़रतों के गाने, मीरासी के गीत, नाच डांस, बे पर्दगी करने, गाने बाजे बजाने, ढोल ढमक्का करने, वीडियो बनाने जैसे कामों से बचें क्यूंकि गाने बाजे बजाना और नाच डांस करना तो वैसे ही ह़राम और जहन्नम में ले जाने वाले काम हैं । आइए ! इ़ब्रत के लिए एक दर्दनाक वाक़िआ़ सुनिए और इ़ब्रत ह़ासिल कीजिए । चुनान्चे,

क़ब्रिस्तान से ख़ौफ़नाक आवाज़

          ह़ज़रते सई़द बिन हाशिम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : हमारे जानने वालों में एक शादी की तक़रीब थी, उन का घर क़ब्रिस्तान के बिल्कुल क़रीब ही था, तो जब शादी की तक़रीब हुई, तो उस के बाप और ख़ानदान वालों ने खेल कूद की मेह़फ़िल का एहतिमाम किया (जिस को आज की मॊडर्न इस्ति़लाह़ में "फ़ंक्शन" केहते हैं), उस में ख़ूब त़ब्ले बजाए और रक़्स किया । अचानक क़ब्रिस्तान से एक आवाज़ गूंजती है और वोह आवाज़ एक अ़रबी शेर पर मुश्तमिल थी, जिस का तर्जमा येह है : ऐ ना पाएदार खेल कूद की लज़्ज़तों  में मश्ग़ूल होने वालो ! ऐ रक़्सो सुरूर की लज़्ज़तों में मगन रेहने वालो ! ऐ मूसीक़ी और म्यूज़िक के लुत़्फ़ो सुरूर में गुम हो जाने वालो ! मौत तमाम तर खेल कूद को ख़त्म कर देगी, तुम्हारी रक़्सो सुरूर की मेह़फ़िल को ख़त्म कर देगी, बहुत से ऐसे लोग जो अपनी लज़्ज़तों में मसरूफ़ होते हैं, मौत एक ही वार में उन को अपने अहलो इ़याल से अलग कर देती है । येह ख़ौफ़नाक आवाज़ सुन कर सब कांप गए और दुल्हा भी बहुत डर गया । ह़ज़रते सई़द बिन हाशिम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ख़ुदा की क़सम ! चन्द दिनों के बाद ही उस नौजवान दूल्हे का इन्तिक़ाल हो गया । (موسوعہ ابن ابی الدنیا،کتاب الہواتف،۲/۴۵۹،حدیث:۴۸)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा वाक़िए़ में हमारे लिए इ़ब्रत ही इ़ब्रत है । यक़ीनन उस नौजवान के दिल में भी येही होगा : अभी मैं जवान हूं, अभी काफ़ी उ़म्र पड़ी है, ख़ूब जवानी को Enjoy करूंगा, अभी शादी हो रही है, अपनी ख़ुशी के इन अय्याम से ख़ूब लज़्ज़त उठाऊंगा, अपनी सारी ख़्वाहिशात को पूरा करूंगा, रिश्तेदारों और दोस्तों की दावतें खाऊंगा लेकिन आह ! मौत की आंधी आई, मज़ाक़ मस्ख़रियों, गानों की धुनों, चुटकुलों और क़हक़हों पर ख़ुश होने वालों की सारी