Book Name:Nafli Ibadat Ka Sawab
رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا से मरवी है कि सरकारे मदीना, सुरूरे क़ल्बो सीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم का पसन्दीदा महीना शाबानुल मुअ़ज़्ज़म था कि इस में रोज़े रखा करते फिर इसे रमज़ानुल मुबारक से मिला
देते ।(ابوداؤد،۲/۴۷۶، حدیث ۲۴۳۱) नीज़ नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इसे अपनी त़रफ़ मन्सूब करते हुवे येह भी इरशाद फ़रमाया : شَعْبَانُ شَھْرِیْ وَرَمَضَانُ شَھْرُ اللہ शाबान मेरा महीना है और रमज़ान अल्लाह पाक का महीना है । (جامع صغیر،حرف الشین،حدیث:۴۸۸۹، ص۳۰۱)
अ़ल्लामा अ़ब्दुर्रऊफ़ मुनावी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक की शर्ह़ में फ़रमाते हैं : रह़मते आ़लम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने शाबानुल मुअ़ज़्ज़म को इस लिए अपना महीना फ़रमाया कि आप इस महीने में (कसरत से नफ़्ल) रोज़े रखा करते थे, ह़ालांकि येह रोज़े आप पर वाजिब नहीं थे और रमज़ानुल मुबारक को इस लिए अल्लाह पाक का महीना फ़रमाया कि उसी ने इस महीने के रोज़े फ़र्ज़ फ़रमाए हैं । (فیض القدیر،حرف الشین، ۴/۲۱۳،تحت الحدیث:۴۸۸۹)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि हमारे बख़्शे बख़्शाए आक़ा, हम गुनाहगारों को बख़्शवाने वाले मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की इ़बादत का आ़लम तो येह था कि आप इस माहे मुक़द्दस के अक्सर दिनों का रोज़ा रखा करते थे और एक हम हैं कि हमारी ज़िन्दगी में न जाने कितनी बार शाबानुल मुअ़ज़्ज़म का माहे मुबारक तशरीफ़ लाया और बख़्शिशो मग़फ़िरत के परवाने तक़्सीम करता हुवा रुख़्सत हो गया मगर हम इस माहे मुबारक में अपने गुनाहों से तौबा करने, आइन्दा गुनाहों से बचने का पक्का इरादा करने, फ़र्ज़ नमाज़ों का एहतिमाम करने, सदक़ा व ख़ैरात करने, तिलावते क़ुरआने करीम, ज़िक्रो दुरूद, रोज़ों और दीगर नफ़्ल इ़बादत की कसरत करने और अपने रब्बे करीम को राज़ी करने में नाकाम रहे । ह़ालांकि नबिय्ये करीम, रऊफ़ुर्रह़ीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इस महीने में हमें कसरते इ़बादत की तरग़ीब देने के लिए न सिर्फ़ अ़मली त़ौर पर ख़ुद नफ़्ल इ़बादत का एहतिमाम फ़रमाया बल्कि इस महीने की अहमिय्यत बयान करते हुवे इरशाद फ़रमाया : रजब और रमज़ान के बीच में येह महीना है, लोग इस से ग़ाफ़िल हैं । येह वोह महीना है जिस में लोगों के आमाल अल्लाह पाक की (बारगाह की) त़रफ़ उठाए जाते हैं और मुझे येह मह़बूब है कि मेरा अ़मल इस ह़ाल में उठाया जाए कि मैं रोज़ादार हूं । (َسائی،کتاب الصیام، صوم النبی ...الخ، ص ۳۸۷،حدیث: ۲۳۵۴) और बिल ख़ुसूस 15 शाबानुल मुअ़ज़्ज़म की रात में नफ़्ल इ़बादत करने और दिन में रोज़ा रखने का बा क़ाइ़दा ह़ुक्म देते हुवे इरशाद फ़रमाया : जब 15 शाबानुल मुअ़ज़्ज़म की रात आए, तो उस में क़ियाम (यानी इ़बादत) करो और दिन में रोज़ा रखो कि अल्लाह पाक ग़ुरूबे आफ़्ताब से आसमाने दुन्या पर ख़ास तजल्ली फ़रमाता और केहता है : है कोई मुझ से मग़फ़िरत त़लब करने वाला कि उसे बख़्श दूं ! है कोई रोज़ी त़लब करने वाला कि उसे रोज़ी दूं ! है कोई मुसीबत ज़दा कि उसे आ़फ़िय्यत अ़त़ा करूं ! है कोई ऐसा ! है कोई ऐसा ! और येह उस वक़्त तक फ़रमाता है कि फ़ज्र त़ुलूअ़ हो जाए । (ابن ماجہ،کتاب الصلاۃ،باب:ماجاء فی لیلۃ النصف من شعبان،۲/۱۶۰،حدیث: ۱۳۸۸)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد