Book Name:Nafli Ibadat Ka Sawab
(4) तुम्हारा बाप नागहानी अ़ज़ाब से डरता है !
ह़ज़रते रबीअ़ बिन ख़ुसैम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की बेटी ने आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ से अ़र्ज़ की : अब्बाजान ! क्या वज्ह है कि लोग सो जाते हैं और आप नहीं सोते ? तो इरशाद फ़रमाया : बेटी ! तुम्हारा बाप नागहानी अ़ज़ाब से डरता है जो अचानक रात को आ जाए । (شُعَبُ الْاِیمان،۱ / ۵۴۳،رقم: ۹۸۴)
(5) इ़बादत के लिए जागने का अ़जीब अन्दाज़
ह़ज़रते सफ़्वान बिन सुलैम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की पिन्डलियां नमाज़ में ज़ियादा देर खड़े रेहने की वज्ह से सूज गई थीं, आप इस क़दर कसरत से इ़बादत किया करते थे कि बिलफ़र्ज़ आप से केह दिया जाता कि कल क़ियामत है, तो भी अपनी इ़बादत में कुछ इज़ाफ़ा न कर सकते (यानी उन के पास इ़बादत में इज़ाफ़ा करने के लिए वक़्त की गुन्जाइश ही न थी) । जब सर्दी का मौसिम आता, तो आप मकान की छत पर सोया करते ताकि सर्दी आप को जगाए रखे और जब गर्मियों का मौसिम आता, तो कमरे के अन्दर आराम फ़रमाते ताकि गर्मी और तक्लीफ़ के सबब सो न सकें (क्यूंकि A.C तो दूर की बात है, उन दिनों बिजली का पंखा भी न होता था) । सजदे की ह़ालत में ही आप का इन्तिक़ाल हुवा । आप दुआ़ किया करते थे : ऐ अल्लाह पाक ! मैं तेरी मुलाक़ात को पसन्द करता हूं, तू भी मेरी मुलाक़ात को पसन्द फ़रमा । (اتحاف السادة،۱۳ /۲۴۷،۲۴۸)
(6) रोते रोते नाबीना हो जाने वाली ख़ातून
ह़ज़रते ख़व्वास رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : हम रिह़ला आ़बिदा के पास गए, येह कसरत से रोज़े रखती थीं और इतना रोतीं कि इन की बीनाई जाती रही और इतनी कसरत से नमाज़ें पढ़तीं कि खड़ी न हो सकती थीं, लिहाज़ा बैठ कर ही नमाज़ पढ़ती थीं । हम ने इन्हें सलाम किया फिर अल्लाह पाक के अ़फ़्वो करम का तज़किरा किया ताकि इन पर मुआ़मला आसान हो जाए । इन्हों ने येह बात सुन कर एक चीख़ मारी और फ़रमाया : मेरे नफ़्स का ह़ाल मुझे मालूम है और उस ने मेरे दिल को ज़ख़्मी कर दिया है और जिगर टुक्ड़े टुक्ड़े हो गया है । ख़ुदा की क़सम ! मैं चाहती हूं कि काश ! अल्लाह पाक ने मुझे पैदा ही न किया होता और मैं कोई क़ाबिले ज़िक्र शै न होती । येह फ़रमा कर दोबारा नमाज़ में मश्ग़ूल हो गईं । (इह़याउल उ़लूम, 5 / 152, मुलख़्ख़सन)
(7) मौत की याद में भूकी रेहने वाली ख़ातून
ह़ज़रते मुआ़ज़ा अ़दविय्या رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ?? रोज़ाना सुब्ह़ के वक़्त फ़रमातीं : (शायद) येह वोह दिन है जिस में मुझे मरना है । फिर शाम तक कुछ न खातीं । फिर जब रात होती, तो केहतीं : (शायद) येह वोह रात है जिस में मुझे मरना है । फिर सुब्ह़ तक नमाज़ पढ़ती रेहतीं । (इह़याउल उ़लूम, 5 / 152, मुलख़्ख़सन)