Nafli Ibadat Ka Sawab

Book Name:Nafli Ibadat Ka Sawab

पाबन्दी के साथ साथ इस महीने में आ़म दिनों के मुक़ाबले में ज़िक्रो दुरूद, तिलावते क़ुरआने करीम, हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में शिर्कत व हफ़्तावार मदनी मुज़ाकरा देखने, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ और मक्तबतुल मदीना की शाएअ़ कर्दा कुतुबो रसाइल के मुत़ालए़, सदक़ा व ख़ैरात, तक़्सीमे रसाइल, मर्ह़ूमीन के लिए ईसाले सवाब और दुआ़ए मग़फ़िरत करने के लिए सुन्नत की निय्यत से क़ब्रिस्तान की ह़ाज़िरी और दीगर नफ़्ल इ़बादात का भी ज़ियादा से ज़ियादा एहतिमाम करें, यूं भी येह मुबारक महीना हमारे प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم का पसन्दीदा और आप पर ज़ियादा से ज़ियादा दुरूदे पाक पढ़ने का महीना है । जैसा कि :

          ग़ुन्यतुत़्त़ालिबीन में है : शाबानुल मुअ़ज़्ज़म में सरकारे दो आ़लम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم पर दुरूदे पाक की कसरत की जाती है और येह नबिय्ये मुख़्तार   صَلَّی  اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم पर दुरूद भेजने का महीना है । (غُنْیَۃُ الطّالبین،القسم الثالث:مجالس فی مواعظ القرآن ...الخ،/۳۴۲) लिहाज़ा इस माहे मुबारक में कसरत से दुरूदे पाक पढ़ना चाहिए । आइए ! दुरूदे पाक की आ़दत बनाने के लिए एक ह़िकायत सुनते हैं । चुनान्चे,

शफ़ाअ़त की नवीद

        ह़ज़रते इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इरशाद फ़रमाते हैं : एक आदमी, ह़ुज़ूरे अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم पर दुरूद शरीफ़ नहीं पढ़ता था ।   एक रात ख़्वाब में ज़ियारत से मुशर्रफ़ हुवा, आप ने उस की त़रफ़ तवज्जोह न फ़रमाई । उस ने अ़र्ज़ की : ऐ अल्लाह पाक के रसूल (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم) ! क्या आप मुझ से नाराज़ हैं ? फ़रमाया : नहीं ! उस शख़्स ने पूछा : फिर आप मेरी त़रफ़ तवज्जोह क्यूं नहीं फ़रमाते ? फ़रमाया : इस लिए कि मैं तुझे नहीं पेहचानता । उस शख़्स ने अ़र्ज़ की : ह़ुज़ूर ! आप मुझे कैसे नहीं पेहचानते, ह़ालांकि मैं तो आप की उम्मत का एक फ़र्द हूं और उ़लमाए किराम फ़रमाते हैं : आप अपने उम्मतियों को इस से भी ज़ियादा पेहचानते हैं, जैसे कोई मां अपने बेटे को पेहचानती है । आप ने फ़रमाया : उ़लमा ने सच कहा ! मगर तू मुझे दुरूद शरीफ़ के ज़रीए़ याद नहीं करता और बेशक मैं अपने उम्मती को दुरूदे पाक पढ़ने की वज्ह से उतना ही पेहचानता हूं कि जिस क़दर वोह मुझ पर दुरूद पढ़े । जब वोह शख़्स बेदार हुवा, तो उस ने अपने ऊपर लाज़िम कर लिया कि वोह ह़ुज़ूर सरवरे काइनात صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم पर रोज़ाना सौ मरतबा दुरूदे पाक पढ़ेगा । अब उस शख़्स ने रोज़ाना सौ मरतबा दुरूदे पाक पढ़ना अपना मामूल बना लिया । कुछ मुद्दत बाद फिर ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم के दीदार से मुशर्रफ़ हुवा । आप ने फ़रमाया : मैं अब तुझे पेहचानता हूं और मैं तेरी शफ़ाअ़त भी करूंगा । (مکاشفۃ القلوب،الباب التاسع فی المحبۃ، ص ۳۰بتغیر قلیل)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! मालूम हुवा ! दुरूदे पाक पढ़ने वाले से नबिय्ये करीम, रऊफ़ुर्रह़ीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم न सिर्फ़ ख़ुश होते हैं बल्कि बसा अवक़ात शरबते दीदार से भी नवाज़ते हैं । लिहाज़ा अगर हम भी नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की रिज़ा चाहते हैं और ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की ज़ियारत के ख़्वाहिशमन्द हैं, तो हमें दुरूदे पाक को अपने सुब्ह़ो शाम का वज़ीफ़ा बना