Nafli Ibadat Ka Sawab

Book Name:Nafli Ibadat Ka Sawab

सवाब मिलेगा, ऐसा करना बेहतर है । बहर ह़ाल सूरए फ़ातिह़ा के बाद कोई सी भी सूरत पढ़ सकते हैं । (फ़तावा रज़विय्या, 7 / 447, मुलख़्ख़सन)

तहज्जुद गुज़ार के लिए जन्नत के आ़लीशान बालाख़ाने

          अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते अ़ली رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ से रिवायत है, रसूले पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم का फ़रमाने दिल नशीन है : जन्नत में ऐसे बालाख़ाने हैं जिन का बाहर अन्दर से और अन्दर बाहर से देखा जाता है । एक आराबी ने उठ कर अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ! येह किस के लिए हैं ? आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : येह उस के लिए हैं जो नर्म गुफ़्तगू करे, खाना खिलाए, मुतवातिर रोज़े रखे और रात को उठ कर अल्लाह करीम के लिए नमाज़ पढ़े जब लोग सोए हुवे हों । (ترمذی،۴ /۲۳۷ ، حدیث: ۲۵۳۵ -شُعَبُ الْاِیمان،۳/۴۰۴،حدیث:۳۸۹۲)

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : यानी हमेशा रोज़े रखें, सिवा उन पांच दिनों के जिन में रोज़ा ह़राम है, यानी शव्वाल की यकुम और ज़ुल ह़िज्जा की दसवीं ता तेरहवीं । येह ह़दीस उन लोगों की दलील है जो हमेशा रोज़े रखते हैं । बाज़ ने फ़रमाया : इस के माना हैं हर महीने में मुसल्सल तीन रोज़े रखे । (मिरआतुल मनाजीह़, 2 / 260) आइए ! नफ़्ली इ़बादात के तअ़ल्लुक़ से अल्लाह वालों की चन्द ह़िकायात मुलाह़ज़ा कीजिए ।

(1) सारी रात नमाज़ पढ़ते रेहते

          ह़ज़रते अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ बिन रवाद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ रात को सोने के लिए अपने बिस्तर पर आते और उस पर हाथ फेर कर केहते : तू नर्म है लेकिन अल्लाह पाक की क़सम ! जन्नत में तुझ से ज़ियादा नर्म बिस्तर मिलेगा ।  फिर सारी रात नमाज़ पढ़ते रेहते । (इह़याउल उ़लूम, 1 / 467)

(2) शह्द की मख्खी की भिनभिनाहट की सी आवाज़ !

          मश्हूर सह़ाबी, ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह इब्ने मस्ऊ़द رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ जब लोगों के सो जाने के बाद उठ कर क़ियाम (यानी इ़बादत) फ़रमाया करते, तो उन से सुब्ह़ तक शह्द की मख्खी की सी भिनभिनाहट सुनाई देती । (इह़याउल उ़लूम, 1 / 467)

(3) मैं जन्नत कैसे मांगूं ?

          ह़ज़रते सिला बिन अश्यम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ सारी रात नमाज़ पढ़ते । जब सह़री का वक़्त होता, तो अल्लाह पाक की बारगाह में अ़र्ज़ करते : इलाही ! मेरे जैसा आदमी जन्नत नहीं मांग सकता लेकिन तू अपनी रह़मत से मुझे जहन्नम से पनाह अ़त़ा फ़रमा । (इह़याउल उ़लूम, 1 / 467)