Kamalat-e-Mustafa

Book Name:Kamalat-e-Mustafa

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

कमालाते मुस्त़फ़ा की झलक

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! उ़मूमन हमारे हां खाना कम हो और खाने वाले अफ़राद ज़ियादा हो जाएं, तो खाने की मिक़्दार बढ़ाने के इ़लावा और कोई चारा नहीं होता अब ज़रा सोचिए ! तक़रीबन चार किलो आटा और बकरी का एक बच्चा है लेकिन नबिय्ये रह़मत صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के थूक शरीफ़ की बरकत से इतना खाना सिर्फ़ सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان की मुकम्मल जमाअ़त को पूरा हो गया बल्कि जितना पकाया था उतना ही बाक़ी बचा रहा और फिर बकरी की बची हुई हड्डियों पर कलाम पढ़ा, तो वोह गोश्त और खाल पेहन कर पेहले जैसी बकरी हो कर कान झाड़ती उठ खड़ी हुई

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने इस ह़दीसे पाक के तह़्त जो कुछ इरशाद फ़रमाया है, आइए ! उस में से कुछ अहम निकात सुनते हैं : ٭ जिन अफ़राद ने खाना खाया उन की तादाद 1400 थी । उन में से एक हज़ार तो ख़न्दक़ खोदने वाले थे और 400 वोह ह़ज़रात थे जो बाद में बचे खुचे रहे जो मदीनए मुनव्वरा के घरों, बाज़ारों वग़ैरा में थे, मदीनए मुनव्वरा के बच्चे (बल्कि) औ़रतें भी इस दावत में शामिल कर ली गई थीं, ग़रज़ कि खाने वालों के मेले लग गए थे । ख़ुश नसीब थे वोह लोग जो इस बरकत वाले खाने से मुशर्रफ़ हुवे । ٭ ह़ुज़ूरे पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने उन सब की दावत कर दी, उस दिन लंगर ह़ुज़ूर (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) का था, घर ह़ज़रते जाबिर (رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ) का, लिहाज़ा येह एलान और दावत बिल्कुल दुरुस्त है । जो चीज़ इस्तिमाल से घटे नहीं, वोह मालिक की बिग़ैर इजाज़त इस्तिमाल की जा सकती है, जैसे किसी के चराग़ की रौशनी में मुत़ालआ़ कर लेना, किसी की दीवार से साया ले लेना ।