Book Name:Darood-o-Salam Kay Fazail
मुआ़मलात फिर सुन्नतों की तब्लीग़, खाने और आराम वग़ैरा के लिये किस त़रह़ वक़्त मिलता होगा ?
इस का जवाब येह है कि बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن दुन्या की मह़ब्बत में गिरिफ़्तार नहीं थे और न ही टाइम पास करना उन की आ़दत में शामिल था, यूं ज़रूरी काम मसलन खाने, पीने और ह़लाल कमाने के बा'द भी उन के पास काफ़ी वक़्त होता था जिसे वोह ज़िक्र व दुरूद शरीफ़ पढ़ते हुवे गुज़ारते थे जब कि कई लोगों ने शैत़ान के धोके में मुब्तला हो कर इस चन्द रोज़ा ज़िन्दगी ही को सब कुछ समझ रखा है और हर वक़्त, हर लम्ह़ा इस आ़रज़ी दुन्या की रंगीनियों में गुम हैं । अफ़्सोस ! क़ब्र की लम्बी ज़िन्दगी, आख़िरत की सख़्त और मुश्किल तरीन मन्ज़िल की त़रफ़ हमारी बिल्कुल तवज्जोह नहीं । बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن को इस बात का मुकम्मल एह़सास रहता था कि यहां की ज़िन्दगी चन्द रोज़ा है, येह देखते ही देखते ख़त्म हो जाएगी, जो कुछ है वोह मरने के बा'द वाली ज़िन्दगी है ।
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ येह अल्लाह वाले अपनी ज़िन्दगी इस्लाम के पाकीज़ा उसूलों और प्यारे मह़बूब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की सुन्नतों पर अ़मल करने और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ज़ाते त़य्यिबा पर दुरूदे पाक पढ़ने में गुज़ारते हैं, तो हमारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ भी मुश्किलात और मुसीबतों में उन्हें अकेला नहीं छोड़ते बल्कि मुसीबत के वक़्त पहुंच कर उन की मदद भी फ़रमाते हैं । आइये ! इस बारे में एक ईमान ताज़ा करने वाला वाक़िआ़ सुनिये । चुनान्चे,
ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ मूसा ज़रीर رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं एक क़ाफ़िले के साथ बह़री जहाज़ में सफ़र कर रहा था कि अचानक जहाज़ त़ूफ़ान की लपेट में आ गया । येह त़ूफ़ान अ़ज़ाबे इलाही बन कर जहाज़ को हिलाने लगा, हम यक़ीन कर बैठे कि चन्द लम्ह़ों बा'द जहाज़ डूब जाएगा और हम सब मौत के मुंह में चले जाएंगे । इसी आ़लम में मुझ पर नींद का ग़लबा हुवा और