Book Name:Darood-o-Salam Kay Fazail
को ह़ुक्म देगा कि इस शख़्स के लिये क़ियामत तक मग़फ़िरत की दुआ़ करते रहो । (القول البدیع، الباب الخامس في الصلاة عليه في اوقات مخصوصة، الصلاة عليه في شعبان،ص۳۹۵)
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! चूंकि येह महीना हमारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ और दुरूदे पाक पढ़ने का महीना है, तो आइये ! इसी मुनासबत से आज हम दुरूदो सलाम के फ़ज़ाइल सुनते हैं । चुनान्चे,
ह़ज़रते सय्यिद मह़मूद कुर्दी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इरशाद फ़रमाते हैं : मेरी वालिदए माजिदा ने ख़बर दी कि मेरे वालिदे माजिद (या'नी ह़ज़रते सय्यिद मह़मूद कुर्दी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के नानाजान) जिन का नाम मुह़म्मद था, उन्हों ने मुझे वसिय्यत की थी कि जब मेरा इन्तिक़ाल हो जाए और मुझे ग़ुस्ल दे दिया जाए, तो छत से मेरे कफ़न पर एक हरे रंग का छोटा सा ख़त़ गिरेगा जिस में लिखा होगा : ھٰذِہٖ بَرَاءَ ۃُ مُحَمَّدِنِ العَالِمِ بِعِلْمِہٖ مِنَ النَّار मुह़म्मद जो आ़लिम है, इसे इ़ल्म के सबब दोज़ख़ से छुटकारा मिल गया है । उस छोटे से ख़त़ को मेरे कफ़न में रख देना । चुनान्चे, ग़ुस्ल के बा'द वोह ख़त़ गिरा, जब लोगों ने उसे पढ़ लिया, तो मैं ने उसे इन के सीने पर रख दिया । उस ख़त़ में एक ख़ास बात येह थी कि जिस त़रह़ सफ़ह़े के ऊपर से पढ़ा जाता था, इसी त़रह़ सफ़ह़े के पीछे से भी पढ़ा जाता था । मैं ने अपनी वालिदए माजिदा से पूछा कि नानाजान का अ़मल क्या था ? अम्मीजान ने फ़रमाया : کَانَ اَ کْثَرُ عَمَلِہٖ دَوَامُ الذِّکْرِمَعَ کَثْرَۃِ الصَّلٰوۃِ عَلَی النَّبِی उन का येह अ़मल था कि वोह हमेशा ज़िक्रुल्लाह करने के साथ साथ दुरूदे पाक की भी कसरत किया करते थे । (سعادَۃ الدارین، الباب الرابع ،اللطیفۃ السادسۃ والتسعون، ص۱۵۲)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आप ने सुना कि दुरूदे पाक की कसरत कैसा बेहतरीन अ़मल है कि इस की बरकत से लोगों की आंखों के सामने दोज़ख़ से आज़ादी का परवाना आ गया, जिन लोगों ने नबिय्ये पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर दुरूदे पाक पढ़ने की येह बरकत अपनी आंखों से देखी होगी, तो उन का भी