Darood-o-Salam Kay Fazail

Book Name:Darood-o-Salam Kay Fazail

1.      रोज़ाना 350 बार दिन में और हर रात में 350 बार दुरूदे पाक पढ़ना है । (افضلُ الصَّلوات علٰی سیِّد السَّادات، ص۳۰)

2.      ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम अ़ब्दुल वह्हाब शा'रानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ "कश्फ़ुल ग़ुम्मा" में बा'ज़ उ़लमाए किराम का क़ौल नक़्ल फ़रमाते हैं : सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर कसरत से दुरूद शरीफ़ की कम अज़ कम ता'दाद हर रात 700 बार और हर दिन 700 बार है । (کشْفُ الغُمَّۃ،باب جامع لفضائل الذکر بجمیع انواعہ…الخ،۱/۳۲۷)

3.      मश्हूर मुह़द्दिस, ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिसे देहलवी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : रोज़ाना कम अज़ कम 1000 मरतबा दुरूद शरीफ़ ज़रूर पढ़िये, वरना 500 को काफ़ी समझिये । बा'ज़ बुज़ुर्गों ने रोज़ाना 300 और बा'ज़ ने नमाज़े फ़ज्र व अ़स्र के बा'200, 200 पढ़ने को फ़रमाया है, कुछ सोते वक़्त भी पढ़ने की आ़दत डालिये । मज़ीद फ़रमाते हैं : रोज़ाना कम अज़ कम 100 बार दुरूदे पाक तो ज़रूर पढ़ना चाहिये । बा'ज़ दुरूद शरीफ़ के ऐसे सीग़े हैं (मसलन "صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ") जिन के पढ़ने से 1000 का अ़दद आसानी से और जल्द पूरा हो जाता है । (अगर इसी को वज़ीफ़ा बना लिया जाए) और वैसे भी जो कसरत से दुरूदे पाक पढ़ने का आ़दी होता है, उस पर वोह आसान हो जाता है । बहर ह़ाल जो आ़शिके़ रसूल होता है, उसे दुरूदो सलाम पढ़ने से वोह लज़्ज़त व मिठास ह़ासिल होती है, जो उस की रूह़ को क़ुव्वत पहुंचाती है । (जज़्बुल क़ुलूब, स. 231, 232, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! रोज़ाना 100 बार, 300 बार, सुब्ह़ो शाम 200, 200 बार बल्कि रोज़ाना 1000 बार दुरूदो सलाम पढ़ना भी ज़ियादा मुश्किल (Difficult) नहीं । अब यहां सुवाल येह पैदा होता है कि हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن रोज़ाना 10, 10 हज़ार बार बल्कि 40, 40 हज़ार बार दुरूद शरीफ़ किस त़रह़ पढ़ते होंगे ? उन्हें दूसरी इ़बादात, घरेलू और मुआ़शी