Darood-o-Salam Kay Fazail

Book Name:Darood-o-Salam Kay Fazail

चन्द लम्ह़ों के लिये मुझ पर नींद त़ारी हो गई । क्या देखता हूं कि ख़्वाब में रसूले पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ तशरीफ़ ले आए और दुरूदे तुनज्जीना :

اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی سَیِّدِنَا مُحَمَّدٍ صَلَاۃً تُنَجِّیْنَا بِہَا مِنْ جَمِیْعِ الْاَہْوَالِ وَالْاٰفَاتِ وَتَقْضِیْ لَنَا بِہَا

جَمِیْع َالْحَاجَاتِ وَتُطَہِّرُنَا بِہَا مِنْ جَمِیْعِ السَّیِّئَاتِ وَتَرْفَعُنَابِہَااَعْلَی الدَّرَجَاتِ وَتُبَلِّغُنَا بِہَا اَقْصَی الْغَایَاتِ

مِنْ جَمِیْعِ الْخَیْرَاتِ فِی الْحَیَاۃِ وَبَعْدَ الْمَمَات ِاِنَّکَ عَلٰی کُلِّ شَیْئٍ قَدِیْرٌ

पढ़ कर मुझ से इरशाद फ़रमाया : तुम और तुम्हारे साथी 1000 बार येह दुरूद पढ़ लो । जब मैं बेदार हुवा, तो मैं ने अपने तमाम दोस्तों को जम्अ़ किया और इस दुरूदे पाक का विर्द शुरूअ़ कर दिया । अभी 300 बार ही येह दुरूदे पाक पढ़ा था कि त़ूफ़ान का ज़ोर कम होने लगा और त़ूफ़ान आहिस्ता आहिस्ता थम गया, समुन्दर की सत़ह़ अमन वाली हो गई और इस दुरूदे पाक की बरकत से तमाम जहाज़ वालों को नजात मिल गई । (القول البدیع،الباب الخامس فی الصلاۃ علیہ فی اوقات مخصوصۃ، ص۴۱۵، مفہوماً)

प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! दिन हो या रात हमें रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ज़ात पर दुरूदो सलाम के फूल निछावर करते ही रहना चाहिये, इस में हरगिज़ कोताही नहीं करनी चाहिये क्यूंकि सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के हम पर बे शुमार एह़सानात हैं, जिन्हों ने दुन्या में तशरीफ़ लाते ही सजदा फ़रमाया और होटों पर येह दुआ़ जारी थी : رَبِّ ھَبْ لِیْ اُمَّتِی या'नी रब्बे करीम ! मेरी उम्मत को बख़्श दे । (फ़तावा रज़विय्या, 30 / 712, मुलख़्ख़सन)

इमाम ज़ुरक़ानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ नक़्ल फ़रमाते हैं : रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ उंगलियों को इस त़रह़ उठाए हुवे थे जैसे कोई गिर्या व ज़ारी करने वाला उठाता है । (زرقانی علی المواہب،ذکرتزویج عبداللہ آمنۃ،۱/ ۲۱۱)

"रब्बे  हब्ली  उम्मती"  कहते  हुवे  पैदा  हुवे

ह़क़ ने फ़रमाया कि बख़्शा "अस्सलातो वस्सलाम"

(क़बालए बख़्शिश, स. 94)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد