Book Name:Darood-o-Salam Kay Fazail
रह़मते आ़लम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सफ़रे मे'राज पर रवानगी के वक़्त उम्मत के गुनाहगारों को याद फ़रमा कर आबदीदा हो गए, अल्लाह पाक के दीदार और ख़ुसूसी नवाज़िशात के वक़्त भी गुनहगाराने उम्मत को याद फ़रमाया । (بخاری، کتاب التوحید،باب قولہ تعالٰی وکلم اللّٰہ موسٰی تکلیمًا،۴/ ۵۸۱، حدیث:۷۵۱۷ مفہوماً) उ़म्र भर (वक़्तन फ़-वक़्तन) गुनहगाराने उम्मत के लिये ग़मगीन रहे ।
(مسلم، باب دعاء النبی لامتہ وبُکائہ شفقۃ علیہم، ص۱۰۹، حدیث:۳۴۶ مفہومًا)
जब क़ब्र शरीफ़ में उतारा गया, तो होंट मुबारक हिल रहे थे, बा'ज़ सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان ने कान लगा कर सुना, आहिस्ता आहिस्ता उम्मती उम्मती (या'नी मेरी उम्मत, मेरी उम्मत) फ़रमाते थे । क़ियामत में भी इन्हीं के दामन में पनाह मिलेगी । तमाम अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلام "نَفْسِی نَفْسِی اِذْھَبُـوْا اِلٰی غَیْرِی" (या'नी आज मुझे अपनी फ़िक्र है, किसी और के पास चले जाओ) कहेंगे और नबिय्ये मेहरबान صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के लबों पर "یَارَبِّ اُمَّتِیْ اُمَّتِیْ" (या'नी ऐ रब्बे करीम ! मेरी उम्मत को बख़्श दे) जारी होगा ।
(مسلم،باب ادنی اہل الجنَّۃ منزلۃ فیہا، ص۱۰۵ ، حدیث:۳۲۶ )
लिहाज़ा जब नबिय्ये पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने न सिर्फ़ सारी ज़िन्दगी अपनी गुनहगार उम्मत को याद रखा बल्कि क़ियामत में भी हमारी शफ़ाअ़त फ़रमाएंगे, अब मह़ब्बत और अ़क़ीदत का भी येही तक़ाज़ा है कि हम भी उम्मती होने का सुबूत देते हुवे आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की सुन्नतों पर अ़मल करें और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर दुरूदो सलाम पढ़ने से कभी ग़फ़्लत न करें ।
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ हम से बेह़द मह़ब्बत फ़रमाते हैं, हर वक़्त अपनी गुनाहगार उम्मत की बख़्शिश के लिये अपने रब्बे करीम की बारगाह में इल्तिजाएं और दुआ़एं करते हैं । यक़ीनन आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के हम पर बे शुमार एह़सानात हैं मगर येह कब मुमकिन है कि हम आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का शुक्रिया अदा कर सकें, बस इतना ही करें कि आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की बारगाह में दुरूदो सलाम के तोह़्फे़ भेजा करें, या'नी आप