Book Name:Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat
दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "मुकाशफ़तुल क़ुलूब" सफ़ह़ा नम्बर 67 पर है : उ़त्बतुल ग़ुलाम (तौबा से पहले उन) की बुराइयों और शराब नोशी की दास्तानें मश्हूर थीं, एक दिन ह़ज़रते (सय्यिदुना) ह़सन बसरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की मजलिस में आए, उस वक़्त ह़ज़रते (सय्यिदुना) ह़सन (बसरी) رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ (पारह 27, सूरतुल ह़दीद, आयत नम्बर 16 की) तफ़्सीर बयान कर रहे थे :
(پ۲۷،الحدید:۱۶) اَلَمْ یَاْنِ لِلَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اَنْ تَخْشَعَ قُلُوْبُهُمْ لِذِكْرِ اللّٰهِ
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : क्या ईमान वालों के लिये अभी वोह वक़्त नहीं आया कि उन के दिल अल्लाह की याद और उस ह़क़ के लिये झुक जाएं ।
आप (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ) ने इस आयत की ऐसी तफ़्सीर बयान की, कि लोग रोने लगे । एक जवान मजलिस में खड़ा हो गया और कहने लगा : ऐ बन्दए मोमिन ! क्या मुझ जैसा गुनाहगार भी अगर तौबा कर ले, तो अल्लाह पाक क़बूल फ़रमाएगा ? आप (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ) ने फ़रमाया : हां ! अल्लाह पाक तेरे गुनाहों को (भी) मुआ़फ़ कर देगा । जब उ़त्बतुल ग़ुलाम ने येह बात सुनी, तो उन का चेहरा पीला पड़ गया और कांपते हुवे चीख़ मार कर बेहोश हो गए । जब होश आया, तो ह़ज़रते (सय्यिदुना) ह़सन बसरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने उन के क़रीब आ कर येह शे'र पढ़े (जिन का तर्जमा कुछ यूं है) : (1) ऐ अल्लाह पाक के ना फ़रमान जवान ! जानता है ना फ़रमानी की सज़ा क्या है ? (2) ना फ़रमानों के लिये जहन्नम है और ह़श्र के दिन अल्लाह पाक की सख़्त नाराज़ी है । (3) अगर तू जहन्नम की आग पर राज़ी है, तो बेशक गुनाह करता रह, वरना गुनाहों से रुक जा । (4) तू ने अपने गुनाहों के बदले अपनी जान को गिरवी रख दिया है, इस को छुड़ाने की कोशिश कर ।