Book Name:Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat
उन मुबल्लिग़ीन के लिये मदनी फूल मौजूद हैं, जो येह कहते हैं कि हम ने बयान तो किया मगर सुनने वालों पर असर नहीं हुवा, मदनी क़ाफ़िले में सफ़र के लिये कोई तय्यार नहीं हुवा, किसी ने उठ कर मदनी क़ाफ़िले में सफ़र के लिये नाम तक नहीं लिखवाया, यहां के इस्लामी भाई बहुत सख़्त दिल हैं, इन के दिल पर बात असर नहीं करती है वग़ैरा । याद रखिये ! इस क़िस्म की बात वोही कर सकता है जो ख़ुद को इस्लाह़ के क़ाबिल तसव्वुर न करता हो ।
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ फ़रमाते हैं : "लोगों पर दर्सो बयान का असर न हो, तो उन को सख़्त दिल समझने या कहने की बजाए अपने इख़्लास की कमी तसव्वुर कर के इस्तिग़फ़ार करें ।" हमारा काम फ़क़त़ दूसरे इस्लामी भाइयों तक अच्छे अन्दाज़ में इनफ़िरादी कोशिश कर के नेकी की दा'वत पहुंचा देना है, उन को अ़मल की तौफ़ीक़ देने वाली ज़ात तो रब्बे काइनात की है । लिहाज़ा अपनी कोशिश का कोई नतीजा न निकलने पर हरगिज़ दिल छोटा न करें बल्कि इसे अपने इख़्लास की कमी तसव्वुर करते हुवे रिज़ाए इलाही के लिये इनफ़िरादी कोशिश का सिलसिला जारी रखिये और अल्लाह पाक से दुआ़ करते रहिये । इस के साथ साथ ग़ौर कीजिये कि मायूसी का शिकार हो कर कहीं हम शैत़ान के वार को कामयाब तो नहीं बना रहे ? क्या कभी दुन्यवी फ़ाइदों को ह़ासिल करने के लिये की जाने वाली कोशिश के नाकाम होने पर हम ने उसे भी मुकम्मल त़ौर पर छोड़ दिया ? अगर जवाब नफ़ी में हो, तो ख़ुद को संभालिये और मायूसी से दामन छुड़ा कर इनफ़िरादी कोशिश का सिलसिला फिर से शुरूअ़ कर दीजिये । ऐ काश ! हम सब का ऐसा ही मदनी ज़ेहन बन जाए और हम इ़श्के़ रसूल में डूब कर ख़ौफे़ ख़ुदा से लरज़ते हुवे ऐसा बयान करने वाले बन जाएं कि अल्लाह पाक के बन्दों की इस्लाह़ के सिलसिले हों, मस्जिदें आबाद हो जाएं, गुनाह का ज़ोर ख़त्म हो जाए ।
येह अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के इख़्लास ही की बरकत है कि आप की ज़बाने मुबारक से निकलने वाले अल्फ़ाज़ के मुबारक असरात दिल में