Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat

Book Name:Bazurgan-e-Deen Ka Jazba-e-Islah-e-Ummat

तह़रीक दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो जाएं और ज़ैली ह़ल्के़ के 12 मदनी कामों की दूसरों को तरग़ीब दिलाने के साथ साथ ख़ुद भी अ़मली त़ौर पर शामिल हों । ज़ैली ह़ल्के़ के 12 मदनी कामों में से हफ़्तावार एक मदनी काम "हफ़्तावार सुन्नतों भरा इजतिमाअ़" भी है । इजतिमाअ़ में मांगी जाने वाली दुआ़एं ज़रूर रंग लाती हैं क्यूंकि इजतिमाअ़ में तिलावते क़ुरआन, ना'ते रसूल, सुन्नतों भरा इस्लाह़ी बयान, ज़िक्रुल्लाह, रिक़्क़त अंगेज़ दुआ़ और सलातो सलाम होता है, अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلام, सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان और औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن की सीरते मुबारका बयान होती है । ह़ज़रते सय्यिदुना सुफ़्यान बिन उ़यैना رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : عِنْدَ ذِکْرِ الصّٰلِحِیْنَ تَنَزَّلُ الرَّحْمَۃُ नेक लोगों के ज़िक्र के वक़्त रह़मते इलाही उतरती है ।

(حلیۃ الاولیاء، سفیان بن عیینہ،۷ / ۳۳۵ ،رقم:۱۰۷۵۰)

          जब नेक बन्दों के तज़किरों पर रह़मतें उतरती हैं, तो जहां अल्लाह पाक और उस के रसूल, रसूले मक़्बूल, बीबी आमिना के गुल्शन के महकते फूल صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का ज़िक्रे ख़ैर होगा, वहां रह़मतें क्यूं नाज़िल न होंगी ? और जहां छमाछम रह़मतें बरस रही हों, वहां दुआ़एं क्यूं क़बूल न होंगी ? आइये ! बत़ौरे तरग़ीब हफ़्तावार इजतिमाअ़ में ह़ाज़िरी की एक मदनी बहार सुनिये और इजतिमाअ़ में पाबन्दी के साथ ह़ाज़िरी देने की निय्यत कीजिये ।

मस्ख़रे की तौबा

          मर्कज़ुल औलिया के एक इस्लामी भाई बे फ़िक्री और बेबाक त़बीअ़त के मालिक थे, गुनाहों और ग़फ़्लतों की वादियों में गुम थे, टिफ़न बजा कर बच्चों वाले गीत गाने और नक़्लें उतारने के मुआ़मले में ख़ानदान भर में मश्हूर थे । शादी व दीगर तक़रीबात में मिज़ाह़िया चुटकुले और फ़िल्मी ग़ज़लें सुनाना, गाने गाना, नाच दिखाना और त़रह़ त़रह़ के नख़रों से लोगों को हंसाना उन का मह़बूब मश्ग़ला था । स्कूल के ज़माने में एक बा इ़मामा इस्लामी भाई अक्सर उन के बड़े भाई से मिलने आया करते थे । एक दिन बड़े भाई ने इस्लामी भाई से