Nabi e Kareem Kay Mubarak Ashaab ki Fazilat

Book Name:Nabi e Kareem Kay Mubarak Ashaab ki Fazilat

की बरकत से मस्जिद भरो और मस्जिद बनाओ तह़रीक में हमारा ह़िस्सा भी शामिल हो जाएगा, इस ज़िम्मेदारी की बरकत से ख़ुद भी सुन्नतों पर अ़मल करने के साथ साथ दूसरों तक पहुंचाने का मौक़अ़ मिलेगा । लिहाज़ा हमें अपनी तन्ज़ीमी ज़िम्मेदारी के मुत़ाबिक़ मदनी कामों में लगे रहना चाहिये, 12 मदनी कामों में से जिस मदनी काम को करने का हम जज़्बा रखते हों, अपने ज़िम्मेदारान से राबित़ा कर के उन मदनी कामों के ज़रीए़ नेकी की दा'वत की धूमें मचाना शुरूअ़ कर दें । 12 मदनी कामों में से रोज़ाना का एक मदनी काम "मदनी दर्स" भी है, जो इ़ल्मे दीन सीखने, सिखाने का मुअस्सिर तरीन ज़रीआ़ है ।

          शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की चन्द कुतुबो रसाइल के इ़लावा आप की बाक़ी तमाम कुतुबो रसाइल बिल ख़ुसूस "फै़ज़ाने सुन्नत" जिल्द अव्वल और "फै़ज़ाने सुन्नत" जिल्द दुवुम के इन अब्वाब : (1) ग़ीबत की तबाहकारियां और (2) नेकी की दा'वत से मस्जिद, चौक, बाज़ार, दुकान, दफ़्तर और घर वग़ैरा में दर्स देने को तन्ज़ीमी इस्त़िलाह़ में "मदनी दर्स" कहते हैं ।

          ٭ मदनी दर्स बहुत ही प्यारा मदनी काम है कि इस की बरकत से मस्जिद की ह़ाज़िरी की बार बार सआ़दत ह़ासिल होती है । ٭ मदनी दर्स की बरकत से मुत़ालए़ का मौक़अ़ मिलता है । ٭ मदनी दर्स की बरकत से मुसलमानों से मुलाक़ात व सलाम की सुन्नत आ़म होती है । ٭ मदनी दर्स की बरकत से अमीरे अहले सुन्नत के मुख़्तलिफ़ मौज़ूआ़त पर मुश्तमिल कुतुबो रसाइल से इ़ल्मे दीन से माला माल क़ीमती मदनी फूल उम्मते मुस्लिमा तक पहुंचाए जा सकते हैं । ٭ मदनी दर्स, बे नमाज़ियों को नमाज़ी बनाने में बहुत मुआ़विन व मददगार है । ٭ मदनी दर्स, मस्जिद की ह़ाज़िरी से मह़रूम रहने वालों तक भी नेकी की दा'वत पहुंचाने का एक मुफ़ीद तरीन ज़रीआ़ है । ٭ मस्जिद के इ़लावा चौक, बाज़ार, दुकान वग़ैरा में अगर मदनी दर्स होगा, तो इस की बरकत से दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल की वहां भी तश्हीर व नेक नामी होगी । ٭ मदनी दर्स की बरकत से अमीरे अहले सुन्नत की मुख़्तलिफ़ कुतुबो रसाइल का तआ़रुफ़ आ़म होगा । आइये ! मदनी दर्स की एक ईमान अफ़रोज़ ह़िकायत सुनिये । चुनान्चे,

बुरी सोह़बतों से नजात मिल गई

      मर्कज़ुल औलिया के एक इस्लामी भाई के किरदार में बुरी सोह़बतों की वज्ह से इस क़दर बिगाड़ पैदा हो गया था कि उन्हें छोटों पर शफ़्क़त का कोई एह़सास था, न ही बड़ों के अदबो एह़तिराम का कोई ख़याल, बात बात पर लड़ाई, झगड़ा करना उन का मा'मूल बन चुका था, ह़त्ता कि उन की बुरी आ़दतों की वज्ह से घर वाले भी तंग आ चुके थे । एक दिन "दर्से फै़ज़ाने सुन्नत" में शिर्कत की सआ़दत नसीब हुई, इस के बा'द वोह दर्स में पाबन्दी से शिर्कत करने लगे । यूं "मदनी दर्स" की बरकत से उन्हों ने अपनी साबिक़ा ज़िन्दगी से तौबा की और बुरी सोह़बतों से पीछा छुड़ा कर दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो गए ।