Book Name:Nabi e Kareem Kay Mubarak Ashaab ki Fazilat
पर फ़ाइज़ हो जाएं, हरगिज़ हरगिज़ कभी भी वोह किसी सह़ाबी के कमालाते विलायत तक नहीं पहुंच सकते । अल्लाह पाक ने अपने ह़बीबे करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की शम्ए़ नुबुव्वत के परवानों को मर्तबए विलायत का वोह बुलन्दो बाला मक़ाम अ़त़ा फ़रमाया है, इन मुक़द्दस हस्तियों को ऐसी ऐसी अ़ज़ीमुश्शान करामतों से सरफ़राज़ फ़रमाया है कि दूसरे तमाम औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के लिये इस का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता । इस में शक नहीं कि ह़ज़राते सह़ाबए किराम رِضْوَانُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن से इस क़दर ज़ियादा करामतों का सुदूर नहीं हुवा जिस क़दर कि दूसरे औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن से करामतें मन्क़ूल हैं लेकिन याद रहे ! कसरते करामत, अफ़्ज़लिय्यते विलायत की दलील नहीं क्यूंकि विलायत दर ह़क़ीक़त क़ुर्बे इलाही का नाम है, येह क़ुर्बे इलाही जिस को जिस क़दर ज़ियादा ह़ासिल होगा, उसी क़दर उस की विलायत का दरजा बुलन्द से बुलन्द तर होगा । सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان चूंकि निगाहे नुबुव्वत के अन्वार और फै़ज़ाने रिसालत के फ़ुयूज़ो बरकात से फै़ज़याब हैं, इस लिये बारगाहे ख़ुदावन्दी में इन हस्तियों को जो मक़ामो मर्तबा ह़ासिल है, वोह दूसरे औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن को ह़ासिल नहीं ।
दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "बहारे शरीअ़त" जिल्द अव्वल, सफ़ह़ा 252 पर सदरुश्शरीआ़, बदरुत़्त़रीक़ा, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आ'ज़मी عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰہ ِالْقَوِی फ़रमाते हैं : तमाम सह़ाबए किराम رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھُم अहले ख़ैर व सलाह़ (या'नी भलाई और तक़्वा वाले) हैं और आ़दिल । उन का जब ज़िक्र किया जाए, तो ख़ैर (या'नी भलाई) ही के साथ होना फ़र्ज़ है । किसी सह़ाबी के साथ सूए अ़क़ीदत (या'नी बुरी अ़क़ीदत) बद मज़हबी व गुमराही व इस्तिह़क़ाके़ जहन्नम (या'नी जहन्नम की ह़क़दारी) है । मज़ीद फ़रमाते हैं : तमाम सह़ाबए किराम आ'ला व अदना (और उन में अदना कोई नहीं) सब जन्नती हैं, वोह जहन्नम (में दाख़िल तो क्या होंगे उस) की भिनक (या'नी हल्की सी आवाज़ तक) न सुनेंगे और हमेशा अपनी मन मानती मुरादों में रहेंगे, मेह़्शर की वोह बड़ी घबराहट उन्हें ग़मगीन न करेगी, फ़िरिश्ते उन का इस्तिक़्बाल करेंगे कि येह है वोह दिन जिस का तुम से वा'दा था, येह सब मज़मून क़ुरआने अ़ज़ीम का इरशाद है । (बहारे शरीअ़त, 1 / 254)
सह़ाबा में अफ़्ज़लिय्यत की तरतीब
आ'ला ह़ज़रत, अ़ज़ीमुल बरकत, अ़ज़ीमुल मर्तबत, मुजद्दिदे दीनो मिल्लत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ "फ़तावा रज़विय्या शरीफ़" 28वीं जिल्द, सफ़ह़ा 478 पर सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان में अफ़्ज़लिय्यत की तरतीब बयान करते हुवे फ़रमाते हैं : अहले सुन्नत व जमाअ़त نَصَرَہُمُ اللہُ تَعَالیٰ (या'नी अल्लाह पाक उन की मदद फ़रमाए) का इजमाअ़ (या'नी इत्तिफ़ाक़) है कि मुर्सलीने मलाइका व रुसुल व अम्बियाए बशर (या'नी इन्सान और फ़िरिश्तों के रसूलों) صَلَواتُ اللہِ تَعَالیٰ وَتَسْلِیْماتُہ عَلَیْہِمْ के बा'द ह़ज़राते ख़ुलफ़ाए अरबआ़ (या'नी सय्यिदुना सिद्दीके़ अक्बर, सय्यिदुना फ़ारूके़ आ'ज़म, सय्यिदुना