Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool

Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool

शे'र की वज़ाह़त : इस मक़्त़अ़ में आ़शिक़े माहे रिसालत, सरकारे आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ कमाल इन्किसारी (या'नी निहायत आ़जिज़ी) का इज़्हार करते हुवे अपने आप से फ़रमाते हैं : ऐ अह़मद रज़ा ! तू क्या और तेरी ह़क़ीक़त क्या ! तुझ जैसे तो हज़ारों सगाने मदीना (या'नी मदीने के कुत्ते) गलियों में दीवाना वार फिर रहे हैं ।

          येह ग़ज़ल अ़र्ज़ कर के दीदार के इन्तिज़ार में मुअद्दब (या'नी बा अदब) बैठे हुवे थे कि क़िस्मत अंगड़ाई ले कर जाग उठी और चश्माने सर (या'नी सर की आंखों) से बेदारी में अल्लाह पाक के प्यारे ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ज़ियारत से मुशर्रफ़ हुवे । (तज़किरए इमाम अह़मद रज़ा, स. 13, मुलख़्ख़सन)

        मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! मा'लूम हुवा ! आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने इ़श्के़ रसूल को अपनी ज़िन्दगी का सरमाया और ज़िक्रे रसूल को गोया अपना ओढ़ना बिछौना बना रखा था, सारी उ़म्र अपने मह़बूब आक़ा, मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की शानो अ़ज़मत में ना'तें लिख लिख

कर मुसलमानों के जज़्बए इ़श्के़ रसूल को गर्माते रहे और अपनी ज़बान व

क़लम के ज़रीए़ ताजदारे रिसालत صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की इ़ज़्ज़त व नामूस की ह़िफ़ाज़त करते रहे । चूंकि आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ आ़शिक़े सादिक़ थे, लिहाज़ा दियारे ह़बीब की ह़ाज़िरी का शौक़ सीने में मौजें मारता रहा और जब आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ को अपने करीम आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के दरबार में ह़ाज़िरी की सआ़दत मिली, तो इ़श्के़ मुस्त़फ़ा में डूबे हुवे अश्आ़र उस पाक बारगाह में पेश कर दिये । रिक़्क़त व सोज़ से भरपूर अश्आ़र को दरजए क़बूलिय्यत ह़ासिल हुवा, ग़ैबदान आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की रह़मत को जोश आया और आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने अपने दीदार का शरबत पिला कर गोया आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के आ़शिक़े सादिक़ होने पर अपनी मोहर लगा दी ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

इ़श्क़ और मह़ब्बत किसे कहते हैं ?

        हु़ज्जतुल इस्लाम, ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ मह़ब्बत की ता'रीफ़ करते हुवे फ़रमाते हैं : त़बीअ़त का किसी लज़ीज़     चीज़ की त़रफ़ माइल (या'नी मुतवज्जेह) हो जाना "मह़ब्बत" कहलाता है और जब येह मैलान (या'नी तवज्जोह) पुख़्ता (या'नी मज़बूत़) हो जाए, तो उसे "इ़श्क़" कहते हैं । (इह़याउल उ़लूम, 5 / 16, मुलख़्ख़सन) या'नी किसी पसन्दीदा चीज़ की त़रफ़ तअ़ल्लुक़ क़ाइम हो जाना "मह़ब्बत" कहलाता है और जब वोही तअ़ल्लुक़ शिद्दत इख़्तियार कर जाए, तो उसे "इ़श्क़" कहते हैं जब कि अल्लाह पाक और उस के रसूल صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से मह़ब्बत व इ़श्क़ का मत़लब येह है कि उन की इत़ाअ़त व फ़रमां बरदारी वाले काम किये जाएं ।