Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool

Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool

न ही और किसी क़िस्म की आवाज़ (कि इस की इजाज़त नहीं) । जो कुछ सुनूंगी, उसे सुन और समझ कर, उस पे अ़मल करने और उसे बा'द में दूसरों तक पहुंचा कर नेकी की दा'वत आम करने की सआदत ह़ासिल करूंगी ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

        मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! सफ़रुल मुज़फ़्फ़र का बा बरकत महीना जारी व सारी है । येह वोह मुबारक महीना है जिस को दुन्याए सुन्नियत के अ़ज़ीम पेशवा, इमामे अहले सुन्नत, मुजद्दिदे दीनो मिल्लत, परवानए शम्ए़ रिसालत, 'ला ह़ज़रत, अश्शाह, अल ह़ाफ़िज़, अलह़ाज, इमाम अह़मद रज़ा ख़ान عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰہ ِالرَّحْمٰن से एक ख़ास निस्बत ह़ासिल है । आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ को अल्लाह पाक ने बहुत सी ख़ूबियों और कमालात से नवाज़ा, उन्ही में सब से नुमायां ख़ूबी आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ का "इ़श्के़ रसूल" है । आइये ! इस तअ़ल्लुक़ से आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की सीरत के चन्द ईमान अफ़रोज़ गोशे और कुछ मदनी फूल सुनने की सआ़दत ह़ासिल करती हैं ।

'ला ह़ज़रत का इ़श्के़ रसूल

        'ला ह़ज़रत, इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ दूसरी बार ह़ज के लिये ह़ाज़िर हुवे, तो मदीनए मुनव्वरा زَادَہَا اللّٰہُ شَرَفًا وَّتَعْظِیْمًا में नबिय्ये रह़मत, शफ़ीए़ उम्मत صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ज़ियारत की आरज़ू लिये रौज़ए अत़्हर के सामने देर तक सलातो सलाम पढ़ते रहे मगर पहली रात क़िस्मत में येह सआ़दत न थी । इस मौक़अ़ पर वोह मा'रूफ़ ना'तिया ग़ज़ल लिखी, जिस के मत़्लअ़ (या'नी पहले शे'र) में दामने रह़मत से वाबस्तगी की उम्मीद दिखाई है :

वोह सूए लालाज़ार फिरते हैं

तेरे दिन ऐ बहार फिरते हैं

        शे'र की वज़ाह़त : ऐ बहार ! झूम जा कि तुझ पर बहारों की बहार आने वाली है । वोह देख ! मदीने के ताजदार صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सूए लालाज़ार या'नी जानिबे गुलज़ार तशरीफ़ ला रहे हैं ।

          मक़्त़अ़ (या'नी आख़िरी शे'र जिस में शाइ़र का तख़ल्लुस आता है) में बारगाहे रिसालत में अपनी आ़जिज़ी और बे मायगी (या'नी मिस्कीनी) का नक़्शा कुछ यूं खींचा है कि :

कोई क्यूं पूछे तेरी बात रज़ा

तुझ से शैदा हज़ार फिरते हैं

        'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने मिस्रए़ सानी (दूसरे मिस्रअ़) में बत़ौरे आ़जिज़ी अपने लिये "कुत्ते" का लफ़्ज़ इस्ति'माल फ़रमाया है मगर अदबन यहां "शैदा" लिख दिया है (जिस का मत़लब है आ़शिक़) ।