Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool

Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool

फै़ज़याब होते रहे और मख़्लूके़ ख़ुदा को भी फै़ज़याब करते रहे । रह़मते आ़लम, नूरे मुजस्सम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की इ़नायतों का सिलसिला सिर्फ़ आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की ह़यात तक ही मह़दूद न रहा बल्कि बा'दे विसाल भी आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ पर फ़ज़्लो करम की बारिशें होती रहीं । चुनान्चे,

दरबारे रिसालत में इन्तिज़ार

        25 सफ़रुल मुज़फ़्फ़र को बैतुल मुक़द्दस में एक शामी बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने ख़्वाब में अपने आप को दरबारे रिसालत में पाया । तमाम सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان और औलियाए इ़ज़्ज़ाम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن दरबार में ह़ाज़िर थे लेकिन मजलिस में ख़ामोशी त़ारी थी और ऐसा मा'लूम होता था कि किसी आने वाले का इन्तिज़ार है । शामी बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने बारगाहे रिसालत में अ़र्ज़ की : हु़ज़ूर ! मेरे मां बाप आप पर क़ुरबान हों ! किस का इन्तिज़ार है ? सय्यिदे आ़लम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : "हमें अह़मद रज़ा का इन्तिज़ार है ।" शामी बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने अ़र्ज़ की : हु़ज़ूर ! अह़मद रज़ा कौन हैं ? इरशाद हुवा : हिन्दुस्तान में "बरेली" के बाशिन्दे हैं । बेदारी के बा'द वोह शामी बुज़ुर्ग़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ, मौलाना अह़मद रज़ा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की तलाश में हिन्दुस्तान की त़रफ़ चल पड़े और जब वोह बरेली शरीफ़ आए, तो उन्हें मा'लूम हुवा कि उस आ़शिके़ रसूल का उसी रोज़ (या'नी 25 सफ़रुल मुज़फ़्फ़र सिने 1340 सिने हिजरी को) विसाल हो चुका था जिस रोज़ उन्हों ने ख़्वाब में सरवरे काइनात صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को येह कहते सुना था कि "हमे अह़मद रज़ा का इन्तिज़ार है ।" (मल्फ़ूज़ाते आ'ला ह़ज़रत, स. 35-36)  

       मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! बयान को इख़्तिताम की त़रफ़ लाते हुवे सुन्नत की फ़ज़ीलत और चन्द सुन्नतें और आदाब बयान करने की सआ़दत ह़ासिल करती हूं । ताजदारे रिसालत, शहनशाहे नुबुव्वत, मुस्त़फ़ा जाने रह़मत, शम्ए़ बज़्मे हिदायत, नौशए बज़्मे जन्नत صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने जन्नत निशान है : जिस ने मेरी सुन्नत से मह़ब्बत की, उस ने मुझ से मह़ब्बत की और जिस ने मुझ से मह़ब्बत की, वोह जन्नत में मेरे साथ होगा ।

(مِشْکاۃُ الْمَصابِیح ،ج۱ ص۵۵ حدیث ۱۷۵ دارالکتب العلمیۃ بیروت )

सीना तेरी सुन्नत का मदीना बने आक़ा

जन्नत में पड़ोसी मुझे तुम अपना बनाना

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

सलाम की सुन्नतें और आदाब

٭ मुसलमान से मुलाक़ात करते वक़्त उसे सलाम करना सुन्नत है । ٭ दिन में कितनी ही बार मुलाक़ात हो, एक कमरे से दूसरे कमरे में बार बार आना जाना हो, वहां मौजूद मुसलमानों को सलाम करना कारे सवाब है । ٭ सलाम में पहल करना सुन्नत है । ٭