Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! यहां येह बात भी ज़ेहन नशीन रहे कि ना'तिया अश्आ़र तह़रीर करना हर किसी के बस की बात नहीं, न ही हर किसी को इस की इजाज़त है । ना'तिया शाइ़री के लिये फ़न्ने शाइ़री के उसूलों के साथ साथ इ़ल्मे दीन की दौलत वग़ैरा कई चीज़ें ज़रूरी हैं । बहुत से ऐसे शाइ़र जिन का दुन्यवी शाइ़री में कोई सानी नहीं मगर जब उन्हों ने ना'तिया शाइ़री के मैदान में क़िस्मत आज़माई, तो इ़ल्मे दीन और उ़लमाए दीन की सोह़बत से मह़रूम होने की वज्ह से ऐसी ऐसी ठोकरें खाईं कि اَلْاَمَان وَالْحَفِیْظ । बहर ह़ाल आ़फ़िय्यत इसी में है कि आ़म लोग ना'त शरीफ़ लिखने का ख़याल अपने दिल से निकाल दें क्यूंकि येह आसान काम नहीं ।
क़ुरबान जाइये ! आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के कमाले एह़तियात़ पर कि ना'त लिखने के पूरे त़ौर पर अहल होने और फ़न्ने शाइ़री के उसूलों में महारत ह़ासिल होने के बा वुजूद ना'त शरीफ़ लिखने को एक मुश्किल काम कहा करते थे । चुनान्चे, ख़ुद ही फ़रमाते हैं : ह़क़ीक़तन ना'त शरीफ़ लिखना निहायत मुश्किल है जिस को लोग आसान समझते हैं, इस में तलवार की धार पर चलना है । (मल्फ़ूज़ाते आ'ला ह़ज़रत, स. 227)
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ अपनी किताब "कुफ़्रिय्या कलिमात के बारे में सुवाल जवाब" के सफ़ह़ा 232 पर ना'तिया शाइ़री करने के बारे में इरशाद फ़रमाते हैं : येह सुन्नते सह़ाबा है, या'नी बा'ज़ सह़ाबा (عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان) मसलन ह़स्सान बिन साबित رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ और ह़ज़रते सय्यिदुना ज़ैद رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ वग़ैरा से ना'तिया अश्आ़र लिखना साबित है, ताहम येह ज़ेहन में रहे कि ना'त शरीफ़ लिखना निहायत मुश्किल फ़न है, इस के लिये माहिरे फ़न, आ़लिमे दीन होना चाहिये, वरना आ़लिम न होने की सूरत में रदीफ़, क़ाफ़िया और बह़र (या'नी शे'र के वज़्न) वग़ैरा को निभाने के लिये ख़िलाफ़े शान अल्फ़ाज़ तरतीब पा जाने का ख़द्शा रहता है । आ़म लोगों को शाइ़री का शौक़ चराना मुनासिब नहीं कि नस्र के मुक़ाबले में नज़्म में कुफ़्रिय्यात के सुदूर (या'नी वाके़अ़ हो जाने) का ज़ियादा अन्देशा रहता है,
अगर शरई़ ग़लत़ियों से कलाम मह़फ़ूज़ रह भी गया, तो फ़ुज़ूलिय्यात से बचने का ज़ेहन बहुत कम लोगों का होता है । जी हां ! आज कल जिस त़रह़ आ़म गुफ़्तगू में फ़ुज़ूल अल्फ़ाज़ की भरमार पाई जाती है, इसी त़रह़ बयान और ना'तिया कलाम में भी होता है । (कुफ़्रिय्या कलिमात के बारे में सुवाल जवाब, स. 232) लिहाज़ा अदब का तक़ाज़ा तो येही है कि फ़न्ने ना'त से ना वाक़िफ़ अफ़राद ख़ुद से ना'तें लिखने का शौक़ हरगिज़ न पालें कि इसी में दोनों जहान की भलाई है ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ जब तक ज़िन्दा रहे, इ़श्के़ रसूल के सदके़ बारगाहे मुस्त़फ़ा से ह़ासिल होने वाले अन्वारो तजल्लियात से ख़ुद भी