Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool

Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool

शौक़ चराना मुनासिब नहीं कि नस्र के मुक़ाबले में नज़्म में कुफ़्रिय्यात के सुदूर (या'नी वाके़अ़ हो जाने) का ज़ियादा अन्देशा रहता है,

अगर शरई़ ग़लत़ियों से कलाम मह़फ़ूज़ रह भी गया, तो फ़ुज़ूलिय्यात से बचने का ज़ेहन बहुत कम लोगों का होता है । जी हां ! आज कल जिस त़रह़ आ़म गुफ़्तगू में फ़ुज़ूल अल्फ़ाज़ की भरमार पाई जाती है, इसी त़रह़ बयान और ना'तिया कलाम में भी होता है । (कुफ़्रिय्या कलिमात के बारे में सुवाल जवाब, स. 232) लिहाज़ा अदब का तक़ाज़ा तो येही है कि फ़न्ने ना'त से ना वाक़िफ़ अफ़राद ख़ुद से ना'तें लिखने का शौक़ हरगिज़ न पालें कि इसी में दोनों जहान की भलाई है ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो !'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ जब तक ज़िन्दा रहे, इ़श्के़ रसूल के सदके़ बारगाहे मुस्त़फ़ा से ह़ासिल होने वाले अन्वारो तजल्लियात से ख़ुद भी फै़ज़याब होते रहे और मख़्लूके़ ख़ुदा को भी फै़ज़याब करते रहे । रह़मते आ़लम, नूरे मुजस्सम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की इ़नायतों का सिलसिला सिर्फ़ आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की ह़यात तक ही मह़दूद न रहा बल्कि बा'दे विसाल भी आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ पर फ़ज़्लो करम की बारिशें होती रहीं । चुनान्चे,

दरबारे रिसालत में इन्तिज़ार

        25 सफ़रुल मुज़फ़्फ़र को बैतुल मुक़द्दस में एक शामी बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने ख़्वाब में अपने आप को दरबारे रिसालत में पाया । तमाम सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان और औलियाए इ़ज़्ज़ाम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن दरबार में ह़ाज़िर थे लेकिन मजलिस में ख़ामोशी त़ारी थी और ऐसा मा'लूम होता था कि किसी आने वाले का इन्तिज़ार है । शामी बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने बारगाहे रिसालत में अ़र्ज़ की : हु़ज़ूर ! मेरे मां बाप आप पर क़ुरबान हों ! किस का इन्तिज़ार है ? सय्यिदे आ़लम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : "हमें अह़मद रज़ा का इन्तिज़ार है ।" शामी बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने अ़र्ज़ की : हु़ज़ूर ! अह़मद रज़ा कौन हैं ? इरशाद हुवा : हिन्दुस्तान में "बरेली" के बाशिन्दे हैं । बेदारी के बा'द वोह शामी बुज़ुर्ग़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ, मौलाना अह़मद रज़ा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की तलाश में हिन्दुस्तान की त़रफ़ चल पड़े और जब वोह बरेली शरीफ़ आए, तो उन्हें मा'लूम हुवा कि उस आ़शिके़ रसूल का उसी रोज़ (या'नी 25 सफ़रुल मुज़फ़्फ़र सिने 1340 सिने हिजरी को) विसाल हो चुका था जिस रोज़ उन्हों ने ख़्वाब में सरवरे काइनात صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को येह कहते सुना था कि "हमे अह़मद रज़ा का इन्तिज़ार है ।" (मल्फ़ूज़ाते आ'ला ह़ज़रत, स. 35-36)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد