Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool
(या'नी मुतवज्जेह) हो जाना "मह़ब्बत" कहलाता है और जब येह मैलान (या'नी तवज्जोह) पुख़्ता (या'नी मज़बूत़) हो जाए, तो उसे "इ़श्क़" कहते हैं । (इह़याउल उ़लूम, 5 / 16, मुलख़्ख़सन) या'नी किसी पसन्दीदा चीज़ की त़रफ़ तअ़ल्लुक़ क़ाइम हो जाना "मह़ब्बत" कहलाता है और जब वोही तअ़ल्लुक़ शिद्दत इख़्तियार कर जाए, तो उसे "इ़श्क़" कहते हैं जब कि अल्लाह पाक और उस के रसूल صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से मह़ब्बत व इ़श्क़ का मत़लब येह है कि उन की इत़ाअ़त व फ़रमां बरदारी वाले काम किये जाएं ।
ह़ज़रते सय्यिदुना सहल बिन अ़ब्दुल्लाह رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : अल्लाह पाक से मह़ब्बत की अ़लामत, क़ुरआन से मह़ब्बत करना है और क़ुरआन से मह़ब्बत की अ़लामत, नबिय्ये ज़ीशान صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से मह़ब्बत करना है और नबिय्ये आख़िरुज़्ज़मान صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से मह़ब्बत की अ़लामत, उन की सुन्नत से मह़ब्बत करना और इन सब से मह़ब्बत की अ़लामत येह है कि आख़िरत से मह़ब्बत करना और आख़िरत से मह़ब्बत की अ़लामत येह है कि क़दरे ज़रूरत के इ़लावा दुन्या से बुग़्ज़ रखना । (الجامع لاحکام القرآن، الجزء الرابع،۲/۴۸، ملتقطاً )
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! मा'लूम हुवा ! सच्चा आ़शिके़ रसूल वोही है जो दुन्या की मह़ब्बत से पीछा छुड़ा कर अल्लाह पाक और उस के रसूल صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की इत़ाअ़त में ज़िन्दगी गुज़ारता है और ज़रूरत से ज़ियादा दुन्या के पीछे नहीं जाता । जो लोग इ़श्के़ मुस्त़फ़ा को दुन्या की पसन्दीदा चीज़ों पर तरजीह़ देते हैं, उन्हें येह अ़ज़ीमुश्शान इनआ़मात ह़ासिल होते हैं : (1) अल्लाह करीम ऐसे लोगों के दिलों में ईमान रासिख़ (या'नी मज़बूत़ फ़रमा देता है । (2) उन का ख़ातिमा भी अच्छा होता है । (3) अल्लाह पाक ह़ज़रते सय्यिदुना जिब्रईले अमीन عَلَیْہِ السَّلَام के ज़रीए़ ऐसे लोगों की मदद फ़रमाता है । (4) उन्हें हमेशा रहने वाली जन्नतों में दाख़िल फ़रमाएगा जिन के नीचे नहरें बहती हैं । (5) ऐसे लोग, अल्लाह पाक के पसन्दीदा बन्दे कहलाते हैं । (6) मुंह मांगी मुरादें पाते हैं बल्कि उम्मीद व ख़याल से भी बढ़ कर ने'मतें पाते हैं । (7) सब से बड़ी ख़ुश ख़बरी येह कि अल्लाह पाक उन से राज़ी हो जाता है ।
(माख़ूज़ अज़ तम्हीदुल ईमान : 61)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ का तआ़रुफ़
आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की विलादते बा सआ़दत बरेली शरीफ़ के मह़ल्ला "जसूली" में 10 शव्वालुल मुकर्रम 1272 हिजरी, ब मुत़ाबिक़ 14 जून 1856 ई़सवी को हफ़्ते के दिन ज़ोहर के वक़्त हुई