Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool

Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

सय्यिद ज़ादे की अनोखी ता'ज़ीम

        शैखे़ त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ अपने रिसाले "तज़किरए इमाम अह़मद रज़ा" में तह़रीर फ़रमाते हैं : मदीनतुल मुर्शिद बरेली शरीफ़ के किसी मह़ल्ले में आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ मद्ऊ़ (या'नी दा'वत पर बुलाए गए) थे । इरादत मन्दों ने अपने यहां लाने के लिये पालकी का एहतिमाम किया । चुनान्चे, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ सुवार हो गए और चार मज़दूर पालकी को अपने कन्धों पर उठा कर चल दिये, अभी थोड़ी ही दूर गए थे कि अचानक इमामे अहले सुन्नत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने पालकी में से आवाज़ दी : "पालकी रोक दीजिये !" पालकी रुक गई । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़ौरन बाहर तशरीफ़ लाए और भर्राई हुई आवाज़ में मज़दूरों से फ़रमाया :  सच सच बताइये आप में सय्यिद ज़ादा कौन है ? क्यूंकि मेरा ज़ौके़ ईमान, सरवरे दो जहान صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ख़ुश्बू मह़सूस कर रहा है । एक मज़दूर ने आगे बढ़ कर अ़र्ज़ की : हु़ज़ूर ! मैं सय्यिद हूं । अभी उस की बात मुकम्मल भी न होने पाई थी कि आ़लमे इस्लाम के पेशवा और अपने वक़्त के अ़ज़ीम मुजद्दिद ने अपना इ़मामा शरीफ़ उस सय्यिद ज़ादे के क़दमों में रख दिया । इमामे अहले सुन्नत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की आंखों से टप टप आंसू गिर रहे हैं और हाथ जोड़ कर इल्तिजा कर रहे हैं : मुअ़ज़्ज़ज़ शहज़ादे ! मेरी गुस्ताख़ी मुआ़फ़ कर दीजिये, बे ख़याली में मुझ से भूल हो गई, हाए ग़ज़ब हो गया ! जिन की ना'ले पाक मेरे सर का ताजे इ़ज़्ज़त है, उन के कांधे (या'नी कन्धे) पर मैं ने सुवारी की, अगर बरोज़े क़ियामत ताजदारे रिसालत صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने पूछ लिया कि अह़मद रज़ा ! क्या मेरे फ़रज़न्द का दोशे नाज़नीं (या'नी नाज़ुक कन्धा) इस लिये था कि वोह तेरी सुवारी का बोझ उठाए ? तो मैं क्या जवाब दूंगा ! उस वक़्त मैदाने मह़्शर में मेरे नामूसे इ़श्क़ की कितनी ज़बरदस्त रुस्वाई होगी ! कई बार ज़बान से मुआ़फ़ कर देने का इक़रार करवा लेने के बा'द इमामे अहले सुन्नत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने आख़िरी इल्तिजाए शौक़ पेश की : मोह़्तरम शहज़ादे ! इस ला शुऊ़री (या'नी ला इ़ल्मी) में होने वाली ख़त़ा का कफ़्फ़ारा जभी अदा होगा कि अब आप पालकी में सुवार होंगे और मैं पालकी को कांधा (या'नी कन्धा) दूंगा । इस इल्तिजा पर लोगों की आंखों से आंसू बहने लगे और बा'ज़ की तो चीख़ें भी बुलन्द हो गईं, हज़ार इन्कार के बा'द आख़िरे कार मज़दूर शहज़ादे को पालकी में सुवार होना ही पड़ा । येह मन्ज़र किस क़दर दिल सोज़ है, अहले सुन्नत का जलीलुल क़द्र इमाम, मज़दूरों में शामिल हो कर अपनी ख़ुदा दाद इ़ल्मिय्यत और