Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool
सादाते किराम से अ़क़ीदत की वज्ह
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! चूंकि एक सच्चे आ़शिक़ के नज़दीक मह़बूब से निस्बत रखने वाली हर चीज़ भी क़ाबिले अ़क़ीदत व मह़ब्बत और लाइके़ एह़तिराम व इ़ज़्ज़त होती है, लिहाज़ा आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ भी प्यारे आक़ा, मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से मन्सूब हर चीज़ से मह़ब्बत करने के साथ साथ सय्यिद ज़ादों से भी ख़ास अ़क़ीदत रखते थे । जैसा कि :
ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना ज़फ़रुद्दीन क़ादिरी रज़वी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : सादाते किराम, जुज़ए रसूल (या'नी नबिय्ये पाक صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के जिस्मे मुनव्वर का टुक्ड़ा) होने की वज्ह से सब से ज़ियादा ता'ज़ीमो तौक़ीर के ह़क़दार हैं और इस पर पूरा अ़मल करने वाला मैं ने आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ को पाया, इस लिये कि किसी सय्यिद साह़िब को वोह उस की ज़ाती जान पहचान या क़ाबिलिय्यत के ए'तिबार से नहीं देखते थे बल्कि इस ह़ैसिय्यत से मुलाह़ज़ा फ़रमाया करते थे कि वोह सरकारे दो आ़लम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का जुज़ हैं फिर इस अ़क़ीदत व नज़रिय्ये के बा'द जो कुछ इन (या'नी सादाते किराम) की ता'ज़ीमो तौक़ीर की जाए, सब दुरुस्त व बजा है ।
(ह़याते आ'ला ह़ज़रत, 1 / 179, मुलख़्ख़सन)
आइये ! सादाते किराम की मह़ब्बत व उल्फ़त से भरपूर आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के दो ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़त सुनते हैं ताकि हमारे दिल में भी सादाते किराम की मह़ब्बत व अ़ज़मत का जज़्बा पैदा हो । चुनान्चे,
नाम लेने वाले की इस्लाह़ फ़रमाई
ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना ज़फ़रुद्दीन क़ादिरी रज़वी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ह़ज़रते मौलाना नूर मुह़म्मद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ और ह़ज़रते मौलाना सय्यिद क़नाअ़त अ़ली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ येह दोनों ह़ज़रात, आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की सोह़बते बा बरकत में रह कर इ़ल्मे दीन ह़ासिल करते थे । एक मरतबा मौलाना नूर मुह़म्मद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने सय्यिद साह़िब का नाम ले कर इस त़रह़ पुकारा : क़नाअ़त अ़ली, क़नाअ़त अ़ली ! जब हु़ज़ूरे अकरम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के आ़शिके़ सादिक़, आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के कानों में येह आवाज़ पड़ी, तो (बरदाश्त) न किया कि ख़ानदाने रसूल के शहज़ादे को इस त़रह़ नाम ले कर पुकारा जाए । फ़ौरन मौलाना नूर मुह़म्मद साह़िब رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ को बुलवाया और इनफ़िरादी कोशिश करते हुवे फ़रमाया : क्या सय्यिद ज़ादों को इस त़रह़ पुकारते हैं ? कभी मुझे भी इस त़रह़ पुकारते हुवे सुना ? (या'नी मैं तो उस्ताद हूं फिर भी कभी ऐसा अन्दाज़ इख़्तियार नहीं किया) । येह सुन कर मौलाना नूर मुह़म्मद साह़िब बहुत शर्मिन्दा हुवे और नदामत से निगाहे झुका लीं । आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने फ़रमाया : जाइये ! आइन्दा ख़याल रखियेगा । (ह़याते आ'ला ह़ज़रत, 1 / 183, मुलख़्ख़सन)