Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool
टुक्ड़े कर दे, तो एक पर لَاۤ اِلٰہَ اِلَّا اللہ और दूसरे पर مُحَمَّدٌرَّسُولُ اللہ लिखा हुवा पाएगा । (सवानहे़ इमाम अह़मद रज़ा, स. 94)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
12 दिन और एक माह के मदनी क़ाफ़िले
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की मह़ब्बत व उल्फ़त का जाम पीने और इ़श्के़ रसूल की अनमोल दौलत पाने के लिये आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता रहिये और मदनी क़ाफ़िलों में सफ़र को अपना मा'मूल बना लीजिये । اَلْحَمْدُلِلّٰہ आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के तह़्त सुन्नतों की धूमें मचाने के लिये 12, 12 दिन और एक, एक माह के मदनी क़ाफ़िले राहे ख़ुदा में सफ़र करते रहते हैं, ख़ुश नसीब आ़शिक़ाने रसूल इन मदनी क़ाफ़िलों के मुसाफ़िर बनते हैं और इस की ख़ूब ख़ूब बरकतें पाते हैं । इन मदनी क़ाफ़िलों में सफ़र की बरकत से अब तक कई लोगों की ज़िन्दगियों में मदनी इन्कि़लाब बरपा हो चुका है ।
٭ اَلْحَمْدُلِلّٰہ मदनी क़ाफ़िलों की बरकत से नेक लोगों की सोह़बत मुयस्सर आती है । ٭ मदनी क़ाफ़िलों की बरकत से मस्जिद में नफ़्ली ए'तिकाफ़ करने की सआ़दत मिलती है । ٭ मदनी क़ाफ़िलों की बरकत से बे नमाज़ियों को नमाज़ों की अहम्मिय्यत मा'लूम होती है । ٭ मदनी क़ाफ़िलों की बरकत से बहुत से दीनी मसाइल सीखने की सआ़दत मिलती है । ٭ मदनी क़ाफ़िलों की बरकत से मस्जिदों में ज़िक्रो अज़्कार, दर्सो बयानात का सिलसिला जारी रहता है । ٭ मदनी क़ाफ़िलों की बरकत से मस्जिदें आबाद होती हैं । ٭ मसाजिद को आबाद करने की तो क्या ही बात है ! ह़दीसे पाक में है : जब कोई बन्दा ज़िक्र व नमाज़ के लिये मस्जिद को ठिकाना बना लेता है, तो अल्लाह पाक उस से ऐसे ख़ुश होता है, जैसे लोग अपने गुमशुदा शख़्स की अपने हां आमद पर ख़ुश होते हैं । (ابن ماجہ،کتا ب المساجد … الخ،با ب لزوم المساجد …الخ،۱/ ۴۳۸، رقم :۸۰۰)
आइये ! बत़ौरे तरग़ीब 12 दिन के मदनी क़ाफ़िले की एक मदनी बहार सुनिये । चुनान्चे,
बेदारी में दीदार हो गया.......किस का ?
एक इस्लामी भाई ने पहली बार 12 दिन के मदनी क़ाफ़िले में सफ़र की सआ़दत ह़ासिल की । बाबुल इस्लाम की एक मस्जिद में उन का मदनी क़ाफ़िला ठहरा । नेकियों की त़रफ़ रग़बत कम होने के सबब उन का दिल नहीं लग रहा था । एक दिन सेह़ने मस्जिद में जदवल के मुत़ाबिक़ सुन्नतों भरा ह़ल्क़ा क़ाइम था कि धूप आ गई । एक इस्लामी भाई उठ कर मस्जिद के अन्दरूनी ह़िस्से में चले गए, कुछ ही देर बा'द मस्जिद के अन्दरूनी ह़िस्से में एक आवाज़ बुलन्द हुई, सब उस त़रफ़ मुतवज्जेह हुवे, इतने में वोही इस्लामी भाई रोते हुवे आए और कहने लगे : अभी अभी जागती ह़ालत में उन्हें सब्ज़ सब्ज़ इ़मामा सजाए हुवे, रौशन चेहरे वाले एक बुज़ुर्ग नज़र आए जो कुछ इस त़रह़ फ़रमा रहे थे : सेह़न के अन्दर धूप