Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool
में सुन्नतें सीखने वाले ज़ियादा सवाब कमा रहे हैं । येह सुन कर तमाम शुरकाए मदनी क़ाफ़िला अश्कबार हो गए, वोह इस्लामी भाई भी बहुत मुतअस्सिर हुवे और उन्हों ने दिल ही दिल में ठान ली कि अब कभी दा'वते इस्लामी का मदनी माह़ोल नहीं छोड़ेंगे । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ अब तो मदनी क़ाफ़िलों में सफ़र उन की आ़दत बन चुकी है । एक बार उन का मदनी क़ाफ़िला बाबुल इस्लाम के एक शहर में ठहरा हुवा था, एक आ़शिके़ रसूल ने बताया कि तहज्जुद के वक़्त उन्हों ने देखा कि सारे क़ाफ़िले वालों पर नूर की बरसात हो रही है, इस से उन्हें मज़ीद जज़्बा मिला । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ येह बयान देते हुवे उन्हें दा'वते इस्लामी के मदनी कामों में से मदनी इनआ़मात की अ़लाक़ाई ज़िम्मेदारी मिली हुई है ।
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि मदनी क़ाफ़िले वालों पर क्या ख़ूब करम की बारिशें होती हैं, ग़ालिबन वोह मौसिम सख़्त गर्मियों का नहीं होगा और सुब्ह़ की ठन्डी ठन्डी धूप में दीवाने सुन्नतें सीखने में मश्ग़ूल होंगे और उन की ह़ौसला अफ़्ज़ाई की तरकीब बनी होगी । वरना बिला वज्ह सख़्त धूप में सुन्नतें सीखने का ह़ल्क़ा लगाना मुनासिब नहीं कि इस से तवज्जोह ह़ासिल नहीं होगी और सीखने में भी ग़लत़ फ़हमियों का इमकान रहेगा ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ अपनी ज़ात के लिये तो सब कुछ बरदाश्त कर सकते थे लेकिन बेचैन दिलों के चैन, रह़मते कौनैन صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की शाने अक़्दस में थोड़ी सी बे अदबी व गुस्ताख़ी भी बरदाश्त नहीं कर सकते थे, येही वज्ह है कि गुस्ताख़ों की गुस्ताख़ाना इ़बारतों को देखते ही आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की आंखों से आंसूओं की झड़ी लग जाती, दुश्मनाने मुस्त़फ़ा की साज़िशों को बे निक़ाब करने में किसी की डांट डपट को ख़ात़िर में न लाते, अपने मह़बूब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की शानो अ़ज़मत बयान करने में मश्ग़ूल रहते और सारी ज़िन्दगी गुस्ताख़ों की त़रफ़ से प्यारे मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की इ़ज़्ज़त व अ़ज़मत पर किये जाने वाले ह़म्लों का सख़्ती से दिफ़ाअ़ करते रहे ताकि वोह ग़ुस्से में जल भुन कर आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ को बुरा भला कहना और लिखना शुरूअ़ कर दें । जैसा कि :
आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की तह़रीर का ख़ुलासा है : اِنْ شَآءَ اللہُ الْعَزِیْزْ अपनी ज़ात पर किये जाने वाले ह़म्लों और तन्क़ीद भरे जुम्लों की त़रफ़ कोई तवज्जोह न दूंगा, सरकार (صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) की त़रफ़ से मुझे येह ख़िदमत सिपुर्द है कि इ़ज़्ज़ते सरकार की ह़िमायत (या'नी दिफ़ाअ़) करूं, न कि अपनी, मैं तो ख़ुश हूं कि जितनी देर मुझे गालियां देते, बुरा कहते और मुझ पर बोह्तान लगाते हैं, उतनी देर मुह़म्मदुर्रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की (शान में) बदगोई और ऐ़बजूई से ग़ाफ़िल रहते हैं, मेरी आंखों की ठन्डक इस में है कि